ताईं पु अव्य॰ [सं॰ तावत् या फा॰ ता] दे॰ 'ताई'-३ । उ॰—अमृत छोड़ विषय रस पीवैं, धृग तृग तिनके ताईं ।— कबीर श॰, भा॰ १, पृ॰ ४५ ।