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ताड़

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ताड़ संज्ञा पुं॰ [सं॰ ताड]

१. शाखारहित एक बड़ा पेड़ जो खंभे के रूप में ऊपर की ओर बढ़ता चला जाता है और केवल सिरे पर पत्ते धारण करता है । विशेष—ये पत्ते चिपटे मजबूत डंठलों में, जो चारों ओर निकले रहते हैं, फैले हुए पर की तरह लगे रहते हैं और बहुत ही कडे़ होते हैं । इसकी लकड़ी की भीतर बनाबट सूत के ठोस लच्छों के रूप की होती है । ऊपर गिरे हुए पत्तों के डंठलों के मूल रह जाते हैं जिससे छाल खुरदुरी दिखाई पड़ती है । चैत के महीने में इसमें फूल लगते हैं और वैशाख में फल, जो भादों में खूब पक जाते हैं । फलों के भीतर एक प्रकार की गिरी और रेशेदार गूदा होता है जो खाने के योग्य होता है । फूलों के कच्चे अंकुरों को पाछने से बहुत सा रस निकलता है जिसे ताड़ी कहते हैं और जो धूप लगने परह नशीला हो जाता है । ताड़ी का व्यवहार नीच श्रेणी के लोग मद्य से स्थान पर करते हैं । बिना धूप लगा रस मीठा होता है जिसे नीरा कहते हैं । महात्मा गाँधी ने नीरा का प्रयोग उचित बताया था । नीरा तथा ताड़ी दोनों में विटामिन बी प्रचुर मात्रा में होता है । बेरी बेरी रोग में दोनों अत्यंत लाभकारी होते हैं । ताड़ प्रायः सब गरम देशों में होता है । भारतवर्ष, अरब, बरमा, सिंहल, सुमात्रा, जावा आदि द्वीपपुंज तथा फारस की खाड़ी के तटस्थ प्रदेश में ताड़ के पेड़ बहुत पाए जाते हैं । ताड़ की अनेक जातियाँ होती हैं । तमिल भाषा में ताल- विलास नामक एक ग्रंथ है जिसमें ७०१ प्रकार के ताड़ गिनाए गए हैं और प्रत्येक का अलग अलग गुण बतलाया गया है । दक्षिण में ताड़ के पेड़ बहुत अधिक होते हैं । गोदावरी आदि नदियों के किनारे कहीं कहीं तालवनों की विलक्षण शोभा है । इस वृक्ष का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है । पत्तों से पंखे बनते हैं और छप्पर छाए जाते हैं । ताड़ की खड़ी लकड़ी मकानों में लगती है । लकड़ी खोखली करके एक प्रकार की छोटी सी नाव भी बनाते हैं । डंठल के रेशे चटाई और जाल बनाने के काम में आते हैं । कई प्रकार के ऐसे ताड़ होता हैं जिनकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है । सिंहल के जफना नामक नगर से ताड़ की लकड़ी दूर दूर भेजी जाती थी । प्राचीन काल में दक्षिण के देशों में तालपत्र पर ग्रंथ लिखे जाते थे । ताड़ का रस औषध के काम में भा आता है । ताड़ी की पुलटिस फोडे़ या घाव के लिये अत्यंत उपकारी है । ताड़ी का सिरका भी पड़ता है । वैद्यक में ताड़ का रस कफ, पित्त, दाह और शोथ को दूर करनेवाला और कफ, वात, कृमि, कुष्ट औक रक्तपित नाशक माना जाता है । ताड़ ऊँचाई के लिये प्रसिद्ध है । कोई कोई पेड़ तीस, चालीस हाथ तक ऊँचे होते है, पर घेरा किसी का ६-*७ बित्ते से अधिक नहीं होता । पर्या॰—तालद्रुम । पत्री । दीर्घस्कंध । ध्वजद्रुम । तृणराज । मधुरस । मदाढ्य । दीर्घपादप । चिरायु । तरुराज । दीर्घपत्र । गुच्छपत्र । आसवद्रु । लेख्यपत्र । महोन्नत ।

२. ताड़न । प्रहार ।

३. शब्द । ध्वनि । धमाका ।

४. घास, अनाज के डंठल आदि की अँटिया डो मुट्ठी में आ जाय । जुट्टी । पूला ।

५. हाथ का एक गहना ।

६. मूर्ति-निर्माणि- विद्या में मूर्ति के ऊपरी भाग का नाम ।

७. पहाड़ । पर्वत (को॰) ।