ताना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]ताना ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ तानना]
१. कपडे़ की बुनावट में वह सूत जो लंबाई के बल होता है । वह तार या सूत दजिसे जुलाहे कपडे़ की लंबाई के अनुसार फैलाते हैं । उ॰— अस जोलहा कर मरम न जाना । जिन जग आइ पसारस ताना ।— कबीर (शब्द॰) । यौ॰ —ताना बाना । क्रि॰ प्र॰ —तानना ।—फैलाना ।
२. दरी, कालीन बुनने का करधा ।
ताना ^२ क्रि॰ स॰ [हिं॰ ताव + ना (प्रत्य॰)]
१. ताव देना । तपाना । गरम करना । उ॰— (क) कर कपोल अंतर नहिं पावत अति उसास तन ताइए (शब्द॰) । (ख) देव दिखावति कंचन सो तन औरन को मन तावै अगौनी ।— देव (शब्द॰) ।
२. पिघलाना । जैसे, घी ताना ।
३. तपाकर परीक्षा करना (सोना आदि धातु) ।
४. परीक्षा करना । जाँचना । आजमाना ।
ताना ^३ † क्रि॰ स॰ [हिं॰ तावा, तवा] गीली मिट्टी, आटे आदि से ढक्कन चिपकाकर किसी बपरतन का मुँह बंद करना । मूँदना । उ॰— तिन श्रवनन पर दोष निरंत्तर सुनि भरि भरि तावों ।— तुलसी (शब्द॰) ।
ताना ^४ संज्ञा पुं॰ [अ॰ तअनह] वह लगती हुई बात जिसका अर्थ कुछ छिपा हो । आक्षेप वाक्य । बोली ठोली । व्यंग्य । कटाक्ष ।
२. उपालंभ । गिला (को॰) ।
३. निंदा । बुराई (को॰) । क्रि॰ प्रि॰ —देना ।—मारना । मुहा॰ — ताने देना = व्यंग्य करना । कटु बात कहना । उ॰— मुँह खोल के दर्द दिल किसी से कह नहीं सकती कि हमजोलियाँ ताने देंगी ।— फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १३३ ।