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तिलक

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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तिलक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वह चिह्न जिसे गीले चंदन, केसर आदि से मस्तक, बाहु आदि अंगों पर सांप्रदायिक संकेत या शेभा के लिये लगाते हैं । टीका । उ॰— छापा तिलक बनाइ करि दगध्या लोक अनेक ।—कबीर ग्रं॰, पृ॰ ४६ । विशेष— भिन्न भिन्न संप्रदायों के तिलक भिन्न भिन्न आकार के होते हैं । वैष्णव खड़ा तिलक या ऊर्ध्व पुंड्र लगाते हैं जिसके संप्रदायानुसार अनेक आकृति भेद होते हैं । शैव आड़ा तिलक या त्रिपुंड्र लगाते हैं । शाक्त लोग रक्त चंदन का आड़ा टीका लगाते हैं । वैष्णवों में तिलक का माहात्म्य बहुत अधिक है । ब्रह्मपुराण में ऊर्ध्व पुंड्र तिलक की बड़ी महिमा गाई गई है । वैष्णव लोग तिलक लगने के लिये द्वादश अंग मानते हैं— मस्तक, पेट, छाती, कंठ, (दोनों पार्श्व) दोनों काँख, दोनों बाँह, कंधा, पीठ और कटि । तिलक प्राचीन काल में श्रृंगार के लिये लगाया जाता था, पीछे से उपासना का चिह्न समझा जाने लगा । क्रि॰ प्र॰ — धारण करना । —धारना ।—लगाना । —सारना ।

२. राजसिंहासन पर प्रतिष्ठा । राज्याभिषेक । गद्दी । यौ॰—राजतिलक । क्रि॰ प्र॰—सारना = राज्य पर अभिषिक्त करना । गद्दी या राजसिंहासन की प्रतिष्ठा देना । उ॰— मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा । जातहि राम तिलक तेहि सारा ।— मानस, ५ । ५४ ।

३. विवाह संबंध स्थिर करने की एक रीति जिसमें कन्या पक्ष के लोग वर के माथे में दही अक्षत आदि का टीका लगाते और कुछ द्रव्य उसके साथ देते हैं । टीका । क्रि॰ प्र॰ —चढ़ना ।—चढ़ाना । मुहा॰—तिलक देना = तिलक के साथ (धन) देना । जैसे,— उसने कितना तिलक दिया । तिलक भेजना = तिलक की सामग्री के साथ वर के घर तिलक चढ़ाने लोगीं को भेजना ।

४. माथे पर पहनने का स्त्रियों का एक गहना । टीका ।

५. शिरो- मणइ । श्रेष्ठ व्यक्ति । किसी समुदाय के बीच श्रेष्ठ या उत्तम पुरुष । विशेष— इसका समास के अंत में प्रयोग बहुधा मिलता है । जैसे, रघुकुलतिलकं ।

६. पुन्नाग की जाति का एक पेड़ जिसमें छत्ते के आकार के फूल वसंत ऋतु में लगते हैं । विशेष— यह पेड़ शोभा के लिये बगीयों में लगाया जाता है । इसकी लकड़ी और छाल दवा के काम आती है ।

७. मूँज का फूल या घूआ ।

८. लोध्र वृक्ष । लोध का पेड़ ।

९. मरुवक । मरुवा ।

१०. एक प्रकार का अश्वत्थ ।

११. एक जाति का घोड़ा । घोडे़ का एक भेद ।

१२. तिल्ली जो पेट के भीतर होती है । क्लोम ।

१३. सौवर्चल लवण । सोंचर नमक ।

१४. संगीत में ध्रुवक का एक भेद जिसमें एक एक चरण पचीस पचीस अक्षरों के होते हैं ।

१५. किसी ग्रंथ की अर्थसूचक व्याख्या । टीका ।

१६. एक रोग (को॰) ।

१७. पीपल का एक प्रकार या भेद (को॰) ।

१८. तिल का पौधा या फूल (को॰) ।

तिलक ^२ संज्ञा पुं॰ [तुं॰ तिरलीक का संक्षिप्त रूप]

१. एक प्रकर का ढोला ढाला जनाना कुरता जिसे प्रायः मुसलमान स्त्रियाँ सूथन के ऊपर पहनती हैं । उ॰— तनिया न तिलक, सुथनिया पगनिया न धामैं धुमराती छाँड़ि सेजिया सुखन की ।— भूषण (शब्द॰) ।

२. खिलअत ।

तिलक कामोद संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक रागिनी जो कामोद औ र विचित्र अथवा कान्हड़ा कामोद और षड्योग से मिलकर बनी है ।

तिलक मुद्रा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] चंदन आदि का टीका और शंख चक्र आदि का छापा जिसे भक्त लोग लगाते हैं ।