तिस

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तिस † ^१ सर्व [सं॰ तस्य, पा॰ तिर्स्स, प्रा॰ तस्सा, तिस्स] 'ता' का एक रूप जो उसे विभक्ति लगने के पूर्व प्राप्त होता है । जैसे, तिसने, तिसको, तिसके इत्यादि । विशेष—अब इस शब्दप्रकार का व्यवहार गद्य में नहीं होता, केवल 'तिसपर' का प्रयोग होता है । मुहा॰—तिस पर = (१) उसके पीछे । उसके उपरांत । (२) इतना होने पर । ऐसी अवस्था में । जैसे,—(क) हमारी चीज भी ले गए, तिसपर हमीं को बातें भी सुनाते हो । (ख) इतना मना किया, तिसपर भी वह चला गया ।

तिस पु ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ तृप] दे॰ 'तृषा' । उ॰—नित हितमय उदार आनँदमन रस बरसत चातक तिस तैं रे ।—घनानंद॰, पृ॰ १६४ ।