तीर्थ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तीर्थ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. वह पवित्र वा पुण्य स्थान जहाँ धर्म- भाव से लोग यात्रा, पूजा या स्नान आदि के लिये जाते हों । जैसे, हिंदुओं के लिये काशी, प्रयाग, जगन्नाथ, गया, द्वारका आदि; अथवा मुसलमानों के लिये मक्का और मदीना । विशेष—हिंदुओं के शास्त्रों में तीर्थ तीन प्रकार के माने गए हैं,— (१) जंगम; जैसे, ब्राह्मण और साधु आदि; (२) मानस; जैसे, सत्य, क्षमा, दया, दाद, संतोष, ब्रह्मचर्य, ज्ञान धैर्य, मधुर भाषण आदि; और (३) स्थावर; जैसे, काशी, प्रयाग गया आदि । इस शब्द के अंत में 'राजा', 'पति' अथवा इसी प्रकार का और शब्द लगाने से 'प्रयाग' अर्थ निकलता है,— तीर्थराज या तीर्थपति = प्रयाग । तीर्थ जाने अथवा वहाँ से लौट आने के समय हिंदुओं के शास्त्रों में सिर मुँडा़कर श्राद्ध करने और ब्राह्मणों को भोजन करने का भी विधान है ।
२. कोई पवित्र स्थान ।
३. हाथ में के कुछ विशिष्ट स्थान । विशेष—दाहिने हाथ के अँगूठे का ऊपरी भाग ब्रह्मतीर्थ, अँगूठे और तर्जनी का मध्य भाग पितृतीर्थ, कनिष्ठा उँगली के नीचे का भाग प्रजापत्य तीर्थ और उँगलियों का अगला भाग देव- तीर्थ माना जाता है । इन तीर्थों से क्रमशः आचमन, पिंडदान, पितृकार्य और देवकार्य किया जाता है ।
४. शास्त्र ।
५. यज्ञ ।
६. स्थान । स्थल ।
७. उपाय ।
८. अवसर ।
९. नारीरज । रजस्वला का रक्त ।
१०. अवतार ।
११. चरणामृत । देव-स्नान-जल ।
१२. उपाध्याय । गुरु ।
१३. मंत्री । अमात्य ।
१४. योनि ।
१५. दर्शन ।
१६. घाट ।
१७. ब्राह्मण । विप्र ।
१८. निदान । कारण ।
१९. अग्नि ।
२०. पुण्यकाल ।
२१. संन्यासियों की एक उपाधि ।
२२. वह जो तार दे । तारनेवाला ।
२३. वैरभाव को त्यागकर परस्पर उचित व्यवहार ।
२४. ईश्वर ।
२५. माता पिता ।
२६. अतिथि । मेहमान ।
२७. राष्ट्र की अठारह संपत्तियाँ । विशेष—राष्ट्र की इन अठारह संपत्तियों के नाम हैं,—(१) मंत्री, (२) पुरोहित (३) युवराज । (४) भूपति, (५) द्वारपाल, (६) अंतवँसिक, (७) कारागाराध्यक्ष, (८) द्रव्य- संचयकारक, (९) कृत्याकृत्य अर्थ का विनियोजक, (१०) प्रर्देष्टा, (
११. ) नगराध्यक्ष, (१२) कार्य निर्माणकारक, (१३) धर्माध्यक्ष, (१४) सभाध्यक्ष, (१५) दंडपाल, (१६) दुर्गपाल, (१७) राष्ट्रांतपाल और (१८) अटवीपाल ।
२८. मार्ग । पथ (को॰) ।
२९. जलाशय (को॰) ।
३०. साधना । माध्यम (को॰) ।
३१. स्त्रोत । मूल (को॰) ।
३२. मंत्रणा । परामर्श । जैसे कृततीर्थ = जो मंत्रणा कर चुका हो ।
३३. चात्वाल और उत्कर के बीच का वेदी का पथ (को॰) ।
तीर्थ ^२ वि॰
१. पवित्र । पावन । पूत ।
२. मुक्त करनेवाला । रक्षक [को॰] ।