तुलसीदास

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तुलसीदास संज्ञा पुं॰ [सं॰ तुलसी + दास] उत्तरीय भारत के सर्वप्रधान भक्त कवि जिनके 'रामचरितमानस' का प्रचार हिदुस्तान में घर घर है । विशेष—ये जाति के सरयूपारीण ब्राह्मण थे । ऐसा अनुमान किया जाता है कि ये पतिऔजा के दुबे थे । पर तुलसीचरित नामक एक ग्रंथ में, जो गोस्वामी जी के किसी शिष्य का लिखा हुआ माना जाता है और अबतक छपा नहीं है, इन्हें गाना का मिश्र लिखा है । (यह ग्रंथ अब प्रकाशित हो गया है) । वेणीमाधवदास कृत गोसाई चरित्र नामक एक ग्रंथ भी है जो अव नहीं मिलता । उसका उल्लेख शिवसिंह ने अपने शिवसिंह सरोज में किया है । कहते है, वेणीमाधवदास कवि गोसाई जी के साथ प्रायः रहा करते थे । नाभा जी के भक्तमाल में तुलसीदास जी की प्रशंसा आई है; जैसे—कलि कुटिल जीव निस्तार हित बालमीकि तुलसी भयो ।........रामचरित—रस—मतरहत अहनिशि व्रतधारौ । भक्तमाल की टीका में प्रियादास ने गोस्वामी जी का कुछ वृत्तांत लिखा है और वही लोक में प्रसिद्ध है । तुलसीदास जी के जन्मसंवत् का ठीक पता नहीं लगता । पं॰ रामगुलाम द्बिवेदी मिरजापुर में एक प्रसिद्ध रामभक्त हुए हैं । उन्होंने जन्मकाल संवत् १५

८९. बतलाया है । शिवसिंह ने १५८३ लिखा है । इनके जन्मस्थान के संबंध मे भी मतभेद है, पर अधिकांश प्रमाणों से इनका जन्मस्थान चित्रकूट के पास राजा— पुर नामक ग्राम ही ठहरता है, जहाँ अबतक इनके हाथ की लिखी रामायण करुकुछ अंश रक्षित है । तुलसीदास के माता पिता के संबंध में भी कहीं कुछ लेख नहीं मिलता । ऐसा प्रसिद्ध है कि इनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का हुलसी था । पियादास ने अपनी टीका में इनके संबंध में कई बातें लिखी हैं तो अधिकतर इनके माहात्म्य और चमत्कार को प्रकाट करती है । उन्होने लिखा है कि गोस्वामी जी युवावस्था में अपनी स्त्री पर अत्यंत आसक्त थे । एक दिन स्त्री बिना पूछे बाप के घर चली गई । ये स्नेह से व्याकुल होकर रात को उसके पास पहुँचे । उसने इन्हें धिक्कारा— 'यदि तुम इतना प्रेम राम से करते, तो न जाने क्या हो जाते' । स्त्री की बात इन्हें लग गई और ये चट विरक्त होकर काशी चले आए । यहाँ एक प्रेत मिला । उसने हनुमान जी का पता बताया जो नित्य एक स्थान पर ब्रह्मण के वेश में कथा सुनने जाया करते थे । हनुमान् जी से साक्षात्कार होने पर गोस्वामी जी ने रामचंद्र के दर्शन की अभिलाषा प्रकट की । हनुमान जी ने इन्हें चित्रकूट जाने की आज्ञा दी, जहाँ इन्हें दो राजकुमारों के रूप में राम और लक्ष्मण जाते हुए दिखाई पड़े । इसी प्रकार की और कई कथाएँ प्रियादास ने लिखी है; जैसे, दिल्ली के बादशाह का इन्हें बुलाना और कैद करना, बंदरों का उत्पात करना और बादशाह का तंग आकार छोड़ना, इत्यादि । तुलसीदास जी ने चैत्र शुक्ल ९ (रामनवमी), संवत् १६३१ को रामचरित मानस लिखना आरंभ किया । संवत् १६८० में काशी में असीघाट पर इनका शरीरांत हुआ, जैसा इस दोहे से प्रकट है—संबत सोलह सौ असी असी गंग के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी तज्यो शरीर । कुछ लोगों के मत से 'शुक्ला सप्तमी' के स्थान पर 'श्यामा तीज शनि' पाठ चाहिए क्योंकि इसी तिथि के अनुसार गोस्वामी जी के मंदीर के वर्तमान अधिकारी बराबर सीधा दिया करते हैं, और यही तिथि प्रमाणिक मानी जाती है । रामचरितमानस के अति— रिक्त गोस्वामी जी की लिखी और पुस्तकें ये है—दोहावली, गोतावली, कवितावली या कवित्त रामायण, विनयपत्रिका, रामाज्ञा, रामलला नहुछू, बरवै रामायण, जानकीमंगल, पार्वतीमंगल, वैराग्य संदीपनी, कृष्णगीतावली । इनके अति— रिक्त हनुमानबाहुक आदि कुछ स्तोत्र भी गोस्वामी जो के नाम से प्रसिद्ब है ।