तूल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तूल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. आकाश ।
२. तूत का पेड़ । शहतूत ।
३. कपास, मदार, सेमर आदि के डोडे के भीतर का धूआ । रूई । उ॰ । उ॰—(क) जेहि मारु तगिरि मेरु उडा़हीं । कहहु तूल केहि लेखे माहीं ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) व्याकुल फिरत भवन वन जहँ तहँ तूल आक उधराई ।—सूर (शब्द॰) ।
४. घास या तृण का सिरा (को॰) ।
५. फूल या पौधों का गुल्म (को॰) ।
६. धतूरा (को॰) ।
तूल ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ तून = एक पेड़ जिसके फूलों से कपडे़ रँगते हैं ।]
तूल पु ^३ वि॰ [सं॰ तुल्य] तुल्य । समान । उ॰—तदपि संकोच समेत कवि कहहिं सीय सम तूल ।—तुलसी (शब्द॰) ।
तूल ^४ संज्ञा पुं॰ [अ॰]
१. लंबेपन का विस्तार । लंबाई । दीर्घता । यौ॰—तूल अर्ज = लंबाई और चौडा़ई । तूल तकेल = लंबा चौडा़ । विस्तृत । मुहा॰—तूल खींचना = किसी बात या कार्य का आवश्यकता से बहुत बढा़ना । जैसे,—(क) ब्याह का काम बहुत तूल खींच रहा है । (ख) उन लोगों का झगडा़ बहुत तूल खींच रहा है । तूल देना = किसी बात को आवश्यकता से बहूत बढा़ना । जैसे,—हर एक बात को तूल देने की तुम्हारी आदत है । उ॰—अफसरों ने कहा खुदा के लिये बातों को तूल न दो ।—फिसाना, भा॰ ३, पृ॰ १७६ । तूल पकड़ना = दे॰ 'तूल— खींचना' ।
२. विलंब । देर । तवालत (को॰) ।
३. ढेर (को॰) ।