तूस

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तूस ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तुष] भूसी । भूसा । उ॰—जे दिन षीन रे तिहूँ ते बढ़ित ते सब सुष्षत्त नभ न तूस ।—अकबरी॰, पृ ३१८ ।

तूस ^१ संज्ञा पुं॰ [तिब्बती योश] [वि॰ तूसी]

१. एक प्रकार का बहुत उत्तम ऊन जो हिमालय पर काश्मीर से लेकर नैपाल तक पाई जानेवाली एक पहाडी़ बकरी के शरीर पर होता है । पशम । पशमीना । उ॰—तूस तुराई में दुरे दूरो जाय न त्यागि ।—राम॰ धर्म॰, पृ॰ २३४ । विशेष—यह पहाडी़ बकरी हिमालय पर बहुत ऊँचाई तक, बर्फ के निकट तक, पाई जाती है । यह ठंढे से ठंढे स्थानों में रह सकती है और काश्मीर से लेकर मध्य एशिया में अलटाई पर्वत तक मिलती है । इसके शरीर पर घने मुलायम रोयों की बडी़ मोटी तह होती है जिसके भीतरी ऊन को काशमीर में असली तूस या पशम कहते हैं । यह दुशालों में दिया जाता है । खालिस तूस का भी शाल बनता है जिसे तूसी कहते हैं । ऊपर के ऊन या रोएँ से या तो रस्सियाँ बटी जाती हैं या पट्टू नाम का कपडा़ बुना जाता है । तूसवाली बकरियाँ लद्दाख में जाडे़ के दिनों में बहुत उतरती हैं और मारी जाती हैं ।

२. तूस के ऊन का जमाया हुआ कंबल या नमदा ।

तूस पु ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] भय । त्रास । उ॰—अधम गीत मूसे अडर, त्रिविध कुकवि विण तूस ।—बाँकी॰ ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ७८ ।