तेरे † अव्य॰ [हिं॰ ते] से । उ॰—(क) तब प्रभु कह्यो पवनसुत तेरे । जनकसुतहिं जावहु ढिग मेरे ।—विश्राम (शब्द॰) । (ख) यहि प्रकार सब वृक्षन तेरे । भेटि भेंटि पूँछै प्रभु हेरे ।—विश्राम (शब्द॰) ।