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तेवर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तेवर संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] सात दिर्घ अथवा १४ लघु मात्राओं का एक ताल जिसमें तीन आघात और एक खाली रहता है । इसके + ३ ॰ तबले के बोल ये हैं ।—धिन् धिन् धाकेटे, धिन् धिन् धा, तिन् १ + तिन् ताकेटे धिन् धिन् धा । धा ।

तेवर संज्ञा पुं॰ [हिं॰ तेह ( = क्रोध)]

१. कुपित द्दष्टि । क्रोध भरी चितवन । मुहा॰—तेवर आना = मूर्छा आना । चक्कर आना । उ॰—यह कहकर बडी़ बेगम को तेवर आया और धड़ से गिर पड़ीं ।— फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ३०९ । तेवर चढ़ाना = दृष्टि का ऐसा हो जाना जिससे क्रोध प्रकट हो । तेवर चढ़ा लेना या तेवर चढ़ाना = क्रुद्ध होना । दृष्टि को ऐसा बना लेना । जिससे क्रोध प्रकट हो । उ॰—क्यों न हम भी आज तेंवर लें चढ़ा । हैं बुरे तेवर दिखाई दे रहे ।—चोखे॰, पृ॰ ५२ । तेवर तनना = दे॰ 'तेवर चढ़ना' । उ॰— भाल भाग्य पर तने हुए थे तेवर उसके ।—साकेत, पृ॰ ४२३ । तेवर बदलना या बिगड़ना = (१) बेमुरोवत हो जाना । (२) खफा हो जाना । उ॰—अगर स्त्रियों की हँसी की आवाज कभी मरदानों मनें जाती तो वह तेवर बदले घर में आता ।—सेवासदन, पृ॰ २०८ । (३) मृत्युचिह्न प्रकट होना । तेंवर बुरे नजर आना या दिखाई देना' = अनुराग में अंतर पड़ना । प्रेम भाव में अंतर आ जाना । तेवर पर बल पड़ना = दे॰ 'तेवर बुरे नजर आना या दिखाई देना' । उ॰—डर हमें तिरछी निगाहों । का नहीं । देखिए अब बल न तेवर पर पड़े ।—चोखे॰, पृ॰ ५२ । तेवर मैले होना = दृष्टि से खेद, क्रोध या उदासीनता प्रकट होना । तेवर सहना = क्रोध या क्षीभ सहना । क्रोध का विरोध न करना । उ॰—जो पड़े सिर रहें सहते उसे, पर न ओरों के बुरे तेवर सहें ।—चुभते॰ पृ॰ १९ ।

२. भौंह । भृकुटी ।