तेह
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]तेह पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ तक्ष्णय, हिं॰ तेखना]
१. क्रोध । गुस्सा । उ॰—हम हारी कै कै हहा पायन पारयो प्यैरु । लेहु कहा अजहूँ किए तेह तरेरे त्यौरु ।—बिहारी (शब्द॰) ।
२. अहंकार । घमंड । ताव । उ॰—आवै तेह वश भूप करहिं हठ पुनि पाछे पछितैहैं । अवधकिशोर समान और बर जन्म प्रयंत न पैहैं ।—रघुराज (शब्द॰) ।
३. तेजी । प्रचंडता । उ॰— शेष भार खाइकै उतारै फन हु ते भूमि कमठ बराह छो़ड़ि भागैं क्षिति जेह को । भानु सितभानु तारा मंडल प्रतीचि उवैं सोखै सिंधु बाडव तरणि तजै तेह को—रघुराज (शब्द॰) ।