तोमर

विक्षनरी से

तोमर माता भवानी दुर्गा का एक अस्त्र है जो सांप के मुख बाला एक वांण होता है इस तोमर वांण को अर्जुन ने तपस्या कर देवी माता से प्राप्त किया इस वजह से अर्जुन को तोमर भी कहा जाता था इस तोमर वाण की माँ< दुर्गा के कवच> के 13 वे श्लोक मैं वर्णन है जो इस प्रकार है

खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥

अर्जुन को तोमर के नाम से जाना जाने के कारण इसके वंशज ने भी खुद को तोमर लिखना शुरू कर दिया जो क्षत्रिय (राजपूत ) मैं एक उपजाति है इस जाति से गुज्जरों मैं भी तोमर लिखना शुरू हुआ राजपूत राजा मानसिंह तोमर के मृगनयनी गुज्जरी से शादी करने के पश्चात गुज्जरों मैं तोंगर गोत्र बना जो कि तोमरों के ही वंशज है

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

तोमर संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. भाले की तरह एक प्रकार का अस्त्र जिसका व्यवहार प्राचीन काल में होता था । इसमें लकड़ी के डंडे में आगे की ओर लोहे का बड़ा फल लगा रहता था । शर्पला । शापल ।

२. बारह मात्राओं का एक छंद जिसके अंत में एक गुरु और एक लघु होता है । जैसे, तब चले बान कराल । फुंकरत जनु बहु ब्याल । कोप्यो समर श्रीराम । चले विशिख निसित निकाम ।—तूलसी (शब्द॰) ।

३. एक देश का नाम जिसका उल्लेख कई पुराणों में है ।

४. इस देश का निवासी ।

५. राजपूत क्षत्रियों का एक प्राचीन राजवंश जिसका राज्य दिल्ली में आठवीं से बारहवीं शताब्दी तक था । विशेष—प्रसिद्ध राजा अनंगपाल (पृथ्वीराज के नाना) इसी वंश को थे । पीछे से तोमरों ने कन्नौज को अपना राजनगर बनाया था । कन्नौज में इस वंश के प्रसिद्ध राजा जयपाल हुए थे । आजकल इस वंश के बहुत ही कम क्षत्रिय पाए जाते हैं । स्त्रोत < दुर्गा कवच ,महाभारत, व्रन्दावन लाल वर्मा >