थकना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]थकना क्रि॰ अ॰ [सं॰ √स्तभ् वा √स्था + करण - √कृ॰, प्रा॰ थक्कन अथवा देश॰ ]
१. परिश्रम करते करते और पिरश्रम के योग्य न रहना । मिहनत करते करते हार जाना । जैसे, चलते चलते या काम करते करते थक जाना । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
२. ऊब जाना । हैरान हो जाना । जैसे,— कहते कहते थक गए पर वह नहीं मानता । संयो॰ क्रि॰ —जाना ।
३. बुढ़ापे से अशक्त होता । बुढ़ापे के कारण काम करने के योग्य न रहना । जैसे— अब वे बहुत थक गए, घर ही पर रहते हैं । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
४. मंदा पड़ जाना । चलता न रहना । धीमा पड़ जाना ढीला होना या रुक जाना । जैसे, कारबार का थक जाना, रोजगार का थक जाना ।
५. मोहित होकर अचल हो जाना । मुग्ध होना । लुभाना । उ॰— (क) थके नयन रघुपति छबि देखी ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) थके नारि नर प्रेम पियासे ।—तुलसी (शब्द॰) ।