दंडकारण्य संज्ञा पुं॰ [सं॰ दण्डकारण्य] वह प्राचीन वन ज ो विंध्य पर्वत से लेकर गोदावरी के किनारे तक फैला था । इस वन में श्रीरामचंद्र वनवास के काल में बहुत दिनों तक रहे थे । यहीं शूर्पणक्षा के नाक कान कटे थे और सीताहरण हुआ था ।