दरद
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]दरद ^१ संज्ञा पुं॰ [फा़॰ दर्द]
१. पीड़ा । व्यथा । कष्ट । उ॰— दरद दवा दोनों रहै पीतम पास तयार ।—रसनिधि (शब्द॰) ।
२. दया । करुणा । तर्स । सहानुभूति । उ॰— माई नेकहु न दरद करति हिलाकिन हरि रोवै ।— सूर (शब्द॰) । विशेष— दे॰ 'दर्द' ।
दरद ^२ वि॰ [सं॰] भयदायक । भयंकर ।
दरद ^३ संज्ञा पुं॰
१. काश्मीर और हिंदूकुश पर्वत के बीच के प्रदेश का प्राचीन नाम । विशेष— बृहत्संहिता में इस देश की स्थिति ईशान कोण में जललाई गई है । पर आजकल जो 'दरद' नाम की पहाड़ी जाति है लद्दाख, गिलगित, चित्राल, नागर हुँजा आदि स्थानों में ही पाई जाती है । प्राचीन यूनानी और रोमन लेखकों के अनुसार भी इस जाति का निवासस्थान हिंदूकुश पर्वत के आसपास ही निश्चित होता है ।
२. एक म्लेच्छ, जाति, जिसका उल्लेख मनुस्मृति, हरिवंश आदि में है । विशेष— मनुस्मृति में लिखा है कि पौंड्रक, ओड़्र, द्रविड़, कांबोज, यवन, शक, पारद, पह्लव, चीन, किरात, दरद और खस पहले क्षत्रिय थे, पीछे संस्कारविहीन हो जाने और ब्राह्मओं का दर्शन न पाने से शूद्रत्व को प्राप्त हो गए । आजकल जो दारर नाम की जाति है वह काश्मीर के आसपास लद्दाख से लेकर नागरहुँजा और चित्राल तक पाई जाती है । इस जाति के लोग अधिकांश मुसलमान हो गए हैं । पर इनकी भाषा और रीति नीति की और ध्यान देने से प्रकट होता है कि ये आर्यकुलोत्पन्न है । यद्यपि ये लिखने पढ़ने नें मुसल- मान हो जाने के कारण फारसी अक्षरों का व्यवहार करते हैं, तथापि इनकी भाषा काश्मीरी से बुहुत मिलती जुलती है ।
३. इंगुर । सिंगरक । हिंगुल ।