दशा

विक्षनरी से

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दशा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. अवस्था । स्थिति या प्रकार । हालत । जैस,—(क) रोगी की दशा अच्छो नहीं है । (ख) पहले मैंने इस मकान को अच्छी दशा में देखा था ।

२. मनुष्य के जीवन की अवस्था । विशेष—मानव जीवन की दस दशाएँ मान गई हैं—(१) गर्भवास, (२) जन्म, (३) बाल्य, (४) कौमार, (५) पोगंड, (६) यौवन, (७) स्थाविर्य, (८) जरा, (९) प्राणरोध और (१०) नाश ।

३. साहित्य में रस के अंतर्गत विरही की अवस्था । विशेष—ये अवस्थाएँ दस हैं—(१) अभिलाष, (२) चिंता, (३) स्मरण, (४) गुणकथन, (५) उद्वेग, (६) प्रलाप, (७) उन्माद, (८) व्याधि, (९) जड़ता और (१०) मरण ।

४. फलित ज्योतिष के अनुसार मनुष्य के जीवन में प्रत्येक ग्रह का नियत भोगकाल । विशेष—दशा निकालने में कोई मनुष्य की पूरी आयु १२० वर्ष की मानकर चलते हैं और कोई १०८ वर्ष की । पहली रीति के अनुसार निर्धारित दशा विंशोत्तरी और दूसरी के अनुनिर्धारित अष्टोत्तरी कहलाती है । आयु के पूरे काल में प्रत्येक ग्रह के भोग के लिये वर्षों की अलग अलग संख्या नियत है—जैसे, अष्टोत्तरी रीति के अनुसार सूर्य की दशा ६ वर्ष, चंद्रमा की १५ वर्ष, मंगल की ८ वर्ष, बुध की १७ वर्ष शनि की १० वर्ष, ब्रुहस्पति की १९ वर्ष, राहु की १२ वर्ष, और शुक्र की २१ वर्ष मानी नई है । दशा जन्मकाल के नक्षत्र के अनुसार मानी जाती है । जैसे, यदि जन्म कृत्तिका, रोहिणी या मृगशिरा नक्षत्र में होगा तो सूर्य की दशा होगी; भद्रा, पुनर्वसु, पुष्य या अश्लेखा नक्षत्र में होगा तो चंद्रमा की दशा; मघा, पूर्वाफाल्गुनी या उत्तराफाल्गुनी में होगा तो मंगल की दशा; हस्त, चित्रा, स्वाती या विशाखा में होगा तो बुध की दशा; अनुराधा, ज्येष्ठा या मूल नक्षत्र में होगा तो शनि की दशा; पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, अभिजित् या श्रवण नक्षत्र में होगा तो बृहस्पति की दशा; धनिष्ठा, शतभिषा या पूर्व भाद्रपद में होगा तो राहू की दशा और उत्तर भाद्रपद, रेवती, अस्विनी या भरणी नक्षत्र होगा तो शुक्र की दशा होगी । प्रत्येक ग्रह की दशा का फल अलग अलग निश्चित है—जैसे, सूर्य की दशा में चित्त को उद्वेग, धनहानि, क्लेश, विदेशगमन, बंधन, राजपीड़ा इत्यादि । चंद्रमा की दशा में ऐश्वर्य, राजसम्मान, रत्नवाहन की प्राप्ति इत्यादि । प्रत्येक ग्रह के नियत भोगकाल या दशा के अंतर्गत भी एक एक ग्रह का भोगकाल नियत है जिसे अंतर्दशा कहते हैं । रवि की दशा को लीजिए जो ६ वर्ष की है । अब इन ६ वर्षों के बीच सूर्य की अपनी दशा ।

४. महीने की, चंद्रमा की १० महीने की, मंगल की ५ महीने की, बुध की ११ महीने २० दिन की, शनि की ६ महीने २० दिन की, बृहस्पति की १ वर्ष २० दिन की, राहु की ८ महीने की, शुक्र की १ वर्ष २ महीने की है । इन अंतर्दशाओं के फल भी अलग अलग निरूपित हैं—जैसे, सूर्य की दशा में सूर्य की अंतर्दशा का फल राजदंड, मनस्ताप, विदेशगमन इत्यादि; सूर्य की दशा में चंद्र की अंतदेशा का फल शत्रुनाश, रोगशांति, वित्तलाभ इत्यादि । उपर जो हिसाब बतलाया गया है वह नाक्षत्रिकी दशा का है । इसके अतिरिक्त योगिनी, वार्षिकी, लाग्निकी, मुकुंदा, पताकी, हरगौरी इत्यादि और भी दशाएँ हैं पर ऐसा लिखा है कि कलियुग में नाक्षत्रिकी दशा ही प्रधान है ।

५. दीए की बत्ती ।

६. चित्त ।

७. कपड़े का छोर । वस्त्रांत ।