दाद
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]दाद संज्ञा पुं॰ [सं॰] दान [को॰] । यौ॰—दादद = दाता । दान देनेवाला ।
दाद ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ दद्रू] एक चर्मरोग जिसमें शरीर पर उभरे हुए ऐसे चकत्ते पड़ जाते हैं जिनमें बहुत खुजली होती है । दिनाई । विशेष—दाद विशेषतऋः कमर के नीचे जंघे के जोड़ के आस पास होती है जहाँ पसीना होकर मरता है । वैद्यक में यह १८ प्रकार के कोढ़ों में गिनी जाती है । डाक्टरों की परीक्षा से पता लगा है कि दाद एक प्रकार की सूक्ष्म खुमी है जो जंतुओं के चमड़े पर छत्ता बाँधकर जम जाती है और उन्हीं के रक्त आदि से पलती है । दाद प्रायः बरसात में गंदे पानी के संसर्ग से होती है । दाद दो प्रकार की हीती है,—एक कागजी, दूसरी भैसिया । कागजी दाद का छत्ता पतला और छोटा होता है और अधिक नहीं फैलता । भैसिया दाद भयकर होती है, इसके छत्ते बड़े और मोटे होते हैं और कभी शरीर भर में फैलते हैं । यौ॰—दादमर्दन ।
दाद ^३ संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰ दाद] इंसाफ । न्याय । उ॰—तिनसों चाहत दाद तैं मन पस कौन हिसाब । छुरी चलावत हैं गरे जे बेकसक कसाब ।—रसनिधि (शब्द॰) । मुहा॰—दादा चाहना = किसी अत्याचार के प्रतिकार की प्रार्थना करना । दाद देना = (१) न्याय करना । उ॰—देव तो दयानिकेत देत दादि दीन की पै मेरियै अभाग मेरी बार नाथ ढील की ।—तुलसी (शब्द॰) । (२) सराहना । वाह- वाह करना । यौ॰—दादख्वाह = न्यायेच्छु । दादख्वाही = न्याय की प्रार्थना । इंसाफ चाहना । दादगर । दादगुस्तर = दे॰ 'दादगर' दादरस । दादरसी = न्याय पाना ।