दाय

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दाय ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. देने योग्य धन । वह धन जो किसी को देने को हो ।

२. दायजे, दान आदि में दिया जानेवाला धन ।

३. वह पैतृक या संबंधी का धन जिसका उत्तराधिकारियों में विभाग हो सके । वारिसों में बाँटा जानेवाला धन या मिल- कियत । दे॰ 'दायभाग' । विशेष—वह धन जो स्वामी के संबंध निमित्त से ही दूसरे का हो सके, दाय कहलाता है । मिताक्षरा के अनुसार दाय दो प्रकार का है, एक अप्रतिबंध, दूसरा सप्रतिबंध । अप्रतिबंध दाय वह है जिसमें कोई बाधा न हो सके । जैसे, पुत्र पौत्रों का पिता पितामह के धन में स्वत्व । सप्रतिबंध वह है जिसका कोई प्रतिबंधक हो, जिसमें किसी के द्वारा बाधा पड़ सकती हो । जैसे, भाई भतीजों का स्वत्व जो पुत्र के अभाव में होता है, अर्थात् पुत्र का होना जिसका प्रतिबंधक होता है ।

४. दान ।

५. विभाग । अंश । हिस्सा (को॰) ।

६. स्थान । जगह (को॰) ।

७. क्षति । हानि (को॰) ।

८. खंडन । विभाजन (को॰) ।

९. सोल्लुंठ भाषण । व्यंग्यपूर्ण कथन (को॰) ।

दाय पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ दाव] दे॰ 'दाव' । उ॰— सिर धुनि धुनि पछितात मीजि कर, कोउ न मीत हित दुसह दाय ।—तुलसी (शब्द॰) ।