दार
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]दार ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] स्त्री । पत्नी । भार्या । यौ॰—दारकर्म । दारग्रहण । दारपरिग्रह । विशेष— संस्कृत में यद्यपि यह शब्द पुं॰ है तथापि हिंदी में स्त्री॰ ही होता है ।
दार पु ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ दारु] दे॰ 'दारु' । उ॰— तिलनि माँहि ज्यौं तेल है सुंदर पय मैं घीव । दार माँहि है अग्नि ज्यौं देह माँहि यौं सीव ।— सुंदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ७८१ ।
दार ^३ संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰] सूली । उ॰— चढ़ा दार पर जब शेख मंसूर ।— कबूर मं॰, पृ॰ ६०६ ।
दार ^४ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ दाल] दे॰ 'दाल' । उ॰— (क) मूँग दार बिनु बक्कल साजी । केसरि सहित प्रीत रँग राजी ।— रसरतन, पृ॰ २८८ । (ख) चींटी चावल लै चली, बिंच में मिलि गइ दार ।— कबीर सा॰, पृ॰ ८३ ।
दार ^५ प्रत्य॰ [फा़॰] रखनेवाला । वाला । जैसे,— मालदार, दूकानदार ।