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दाह

विक्षनरी से


प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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दाह संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. जलाने की क्रिया या भाव । भस्मीकरण । उ॰— भयौ तो दिली कौ पति देखत फनाह आज, दाह मिटि जवौ ते हमीर नरनाह कौ ।— हम्मीर॰, पृ॰ ३७ ।

२. शव जलाने की क्रिया । मुर्दा फूँकने का काम । विशेष— शुद्धितत्व में दाहकर्म के विशय में इस प्रकार लिखा है : शव को पुत्रादि श्मशान में ले जाकर रखें और स्नान कर पिंडदान के लिये अन्न पकावें । फिर मृतक के शरीर में घी मलकर उसे मंत्रपाठपूर्वक स्नान करवें, दूसरे नए वस्त्र में लपेटें, और आँख, कान, नाक, मुँह इन सात छेदों में थोड़ा सोना डालें । इतना हो चुकने पर चिंता में अग्नि देनेवाला प्राचीनावीत होकर (जनेऊ के दाहिने कंधे पर डालकर) वायाँ घुटना टेककर बैठे और मंत्र फढ़कर कुश से एक रेखा खींचे । फिर उस रेखा पर कुश बिछावे और दाहिने हाथ में तिलसहित जलपात्र लेकर मृतक का नाम, गोत्र आदि उच्चारण करता हुआ जल को कुश पर गिरा है । इसके अनंतर तिलसहित पिंड लेकर कुश पर विसर्जित करे । जब इतना कृत्य हो जाय तब पुत्रादि चिता तैयार करें । और मुर्दें को उसपर दक्खिन ओर सिर करके लेटा दें । जो सामवेदी हों वे शव का मस्तक उत्तर की ओर रखें । फिर अग्नि हाथ में लेकर आग देनेवाला तीन प्रदक्षिणा करे और दक्खिन ओर अपना मुँह करके शव के मस्तक की ओर आग लगा दे । फिर सात लकड़ियाँ हाथ में लेकर सात प्रदक्षिणा करे और प्रत्येक प्रदक्षिणा में एक एक लकड़ी चिता में डालता जा । जब शव जल जाय तब एक बाँस लेकर चिता पर सात बार प्रहार करे जिससे कपाल फूट जाय । इतना करके फिर वह चिता की ओर न ताके और जाकर स्नान कर ले ।

३. जलन । ताप ।

४. एक रोग जिसमें शरीर में जलन मालूम होती है, प्यास जगती है और कंठ सुखता है । वैद्यक के मत से यह रोग दाहपित्त के प्रकोप से होता है । विशष— भावप्रकाश में दाह सात प्रकार लिखा है, (१) रक्तजन्य दाह, जिसमें रक्त कुपित होकर सारे शरीर में दाह उत्पन्न करता है । ऐसा जान पड़ता है, मानो सारा शरीर आग से तप रहा है और क्षण क्षण पर प्यास लगती है । (२) रक्तपूर्ण कोष्ठज दाह, जो किसी अंग में हथियार आदि का धाव लगने पर उस धाव से कोष्ट में रक्त जाने से उत्पन्न होता है । (३) मद्यज दाह । (४) तृष्णाविरोधज दाह । (५) धातुक्षयज दाह ।(६) मर्माभिघातज दाह, और (७) असाध्य वाह जिसमें रोगी का शरीर ऊपर से तो ठंढा रहता है, पर भतर भीतर जला करता है ।

५. शोक । संताप । अत्यंत दुःख । डाह । ईर्ष्या ।

६. चमकती हुई लालिमा । दीप्त लाल रंग । जैसे, आकाश का ।