दिव्य
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]दिव्य ^१ वि॰ [सं॰]
१. स्वर्ग से संबंध रखनेवाला । स्वर्गीय ।
२. आकाश से संबंध रखनेवाला । अलौकिक ।
३. प्रकाशमान । चमकीला ।
४. बहुत बढ़िया या अच्छा । जो देखने में बहुत ही सुंदर या भला मालूम हो । खूब साफ या सुंदर । जैसे,—(क) उन्होंने एक बहुत दिव्य भवन बनवाया था । (ख) आज हमने बहुत दिव्य भोजन किया है ।
४. लोक से परे । लोकातीत (को॰) ।
दिव्य ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. यव । जौ ।
२. गुग्गुल ।
३. आँवला ।
४. शतावार ।
५. ब्राह्मी ।
६. सफेद दूब ।
७. हड़ ।
८. लौंग ।
९. सूअर ।
१०. तत्ववेत्ता ।
११. हरिचंदन ।
१२. अष्टवर्ग के अंतर्गत महामेदा नाम की औषधि ।
१३. कपूरकचरी ।
१४. चमेली ।
१५. जीरा ।
१६. धूप में बरसते हुए पानी से स्नान ।
१७. तीन प्रकार के केतुओं में से एक । वे केतु जिनकी स्थिति भूवायू से ऊपर है ।
१८. तांत्रिकों के आचार के तीन भावों में से एक जिससे पंच मकार, श्मशान और चिता का साधन विधेय है ।
१९. आकाश में होनेवाला एक प्रकार का उत्पात ।
२०. तीन प्रकार के नायकों में से एक । वह नायक जो स्वर्गीय या अलौकिक हो । जैसे, इंद्र, राम, कृष्ण आदि । विशेष—साहित्य ग्रंथों में तीन प्रकार के नायक माने गए हैं दिव्य, अदिव्य और दिव्यादिव्य । दिव्य नायक स्वर्गीय या अलौकिक होते हैं, जैसे, देवता आदि और अदिव्य नायक सांसरिक या लौकिक, जैसे, मनुष्य । दिव्यादिव्य नायक वे होते हैं जो होते तो मनुष्य हैं पर जिनमें गुण देवताओं के होते हैं । जैसे, नल, पुरुरवा, अर्जुन आदि । इसी प्रकार तीन प्रकार की नायिकाएँ भी होती है ।
२१. व्यवहार या न्यायालय में प्राचीन काल की एक प्रकार की परीक्षा जिसमें किसी मनुष्य का अपराधी या निरपराध होना सिद्ध होता था । क्रि॰ प्र॰—देना । उ॰—साँप सभा साबर लकार भए देउँ दिव्य दुसहु साँसति कीजै आगे ही या तन की ।—तुलसी (शब्द॰) ।