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दिव्य

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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दिव्य ^१ वि॰ [सं॰]

१. स्वर्ग से संबंध रखनेवाला । स्वर्गीय ।

२. आकाश से संबंध रखनेवाला । अलौकिक ।

३. प्रकाशमान । चमकीला ।

४. बहुत बढ़िया या अच्छा । जो देखने में बहुत ही सुंदर या भला मालूम हो । खूब साफ या सुंदर । जैसे,—(क) उन्होंने एक बहुत दिव्य भवन बनवाया था । (ख) आज हमने बहुत दिव्य भोजन किया है ।

४. लोक से परे । लोकातीत (को॰) ।

दिव्य ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. यव । जौ ।

२. गुग्गुल ।

३. आँवला ।

४. शतावार ।

५. ब्राह्मी ।

६. सफेद दूब ।

७. हड़ ।

८. लौंग ।

९. सूअर ।

१०. तत्ववेत्ता ।

११. हरिचंदन ।

१२. अष्टवर्ग के अंतर्गत महामेदा नाम की औषधि ।

१३. कपूरकचरी ।

१४. चमेली ।

१५. जीरा ।

१६. धूप में बरसते हुए पानी से स्नान ।

१७. तीन प्रकार के केतुओं में से एक । वे केतु जिनकी स्थिति भूवायू से ऊपर है ।

१८. तांत्रिकों के आचार के तीन भावों में से एक जिससे पंच मकार, श्मशान और चिता का साधन विधेय है ।

१९. आकाश में होनेवाला एक प्रकार का उत्पात ।

२०. तीन प्रकार के नायकों में से एक । वह नायक जो स्वर्गीय या अलौकिक हो । जैसे, इंद्र, राम, कृष्ण आदि । विशेष—साहित्य ग्रंथों में तीन प्रकार के नायक माने गए हैं दिव्य, अदिव्य और दिव्यादिव्य । दिव्य नायक स्वर्गीय या अलौकिक होते हैं, जैसे, देवता आदि और अदिव्य नायक सांसरिक या लौकिक, जैसे, मनुष्य । दिव्यादिव्य नायक वे होते हैं जो होते तो मनुष्य हैं पर जिनमें गुण देवताओं के होते हैं । जैसे, नल, पुरुरवा, अर्जुन आदि । इसी प्रकार तीन प्रकार की नायिकाएँ भी होती है ।

२१. व्यवहार या न्यायालय में प्राचीन काल की एक प्रकार की परीक्षा जिसमें किसी मनुष्य का अपराधी या निरपराध होना सिद्ध होता था । क्रि॰ प्र॰—देना । उ॰—साँप सभा साबर लकार भए देउँ दिव्य दुसहु साँसति कीजै आगे ही या तन की ।—तुलसी (शब्द॰) ।