दीठ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दीठ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ दृष्टि, प्रा॰ दिट्ठि]

१. देखने की वृत्ति या शक्ति । आँख की ज्योति । दृष्टि । उ॰— पिय की आरति देखि मेरे जिय दया होत पै तेरी दीठ देखि—देखि डरत ।— नंद॰, ग्रं॰, पृ॰ ३६८ । मुहा॰— दीठ मारी जाना = देखने की शक्ति न रह जाना ।

२. देखने के लिये नेत्रों की प्रवृत्ति । आँख की पुतली की किसी वस्तु की सीध में होने की स्थिति । टक । दृकपात । अवलोकन । चितवन । नजर । निगाह । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।—डालना । यौ॰— दीठबँद । दीठवंदी । मुहा॰—दीठ करना = दृष्टि डालना । ताकना । दीठ चूकना= नजर न पड़ना । दृष्टि का इधर उधर हो जाना । दीठ फिरना = (१) नेत्रों का दूसरी ओर प्रवृत्त होना । (२) कृपादृष्टि न रहना । हित का ध्यान या प्रीति न रहना । चित्त अप्रसन्न या खिन्न होना । दीठ फिरना = कृपा होना । दयादृष्टि होना । उ॰— हो गए फेर में पडे़ बरसों । आप की दीठ आज भी न फिरी ।— चुभते॰, पृ॰ २ । दीठ फेकना = नजर डालना । ताकना । दीठ फेरना = (१) नजर हटा लेना । दूसरी ओर ताकना । उ॰— जिधर पीठ दे दीठ फेरती, उधर मैं तुम्हें ढीठ, हेरती ।— साकेत, पृ॰ ३१३ ।(२) कृपादृष्टि न रखना । अप्रसन्न या खिन्न होना । किसी की दीठ बचाना = (१) (किसी के) सामने होने से बचना । आँख के सामने न आना । जान बूझकर न दिखाई पड़ना (भय, लज्जा आदि के कारण) । (२) (किसी से) छिपाना । न दिखाना । उ॰— मोहन आपनो राधिका को विपरीत को चित्र विचित्र बनाय कै । दीह बचाय सलोनी की आरसी में चिपकाइ गयो बहराइ कै ।— रसकुसुमाकर (शब्द॰) । दीठ बाँधना = इस प्रकार जादू करना कि आँखों को और का और दिखाई दे । इंद्रजाल फैलाना । दीठ लागाना = ताकना । दृष्टि करना । उ॰— नहिं लावहिं पर तिय मन दीठी ।— तुलसी (शब्द॰) ।

३. आँख की ज्योति का प्रसार जिससे वस्तुओं के रूप रंग का बोध होता है । दृकपथ । मुहा॰—दीठ पर चढ़ना = (१) देखने में श्रेष्ठ या उत्तम जान पड़ना । निगाह में जँचना । अच्छा लगने के कारण ध्यान में सदा बना रहना । पसंद आना । भाना । (२) आँखों में खटकना । किसी वस्तु का इतना बुरा लगना कि उसका ध्यान सदा बना रहे । दिठ बिछाना = (१) प्रेम या श्रद्धावश किसी के आसरे में लगातार ताकते रहना । उत्कंठापूर्वक किसी के आगमन की प्रतीक्षा करना । (२) किसी के आने पर अत्यंत श्रद्धा या प्रेम से स्वागत करना । दीठ में आना = दिखाई पड़ना । दीठ में पड़ना = दिखाई पड़ना । दीठ में समाना = अच्छा या प्रिय लगने के कारण ध्यान में सदा बना रहना ।

दीठ से उतरना या गिरना = श्रद्धा, विश्वास या प्रेम का पात्र न रहना । (किसी के) विचार में अच्छा न रह जाना ।

४. अच्छी वस्तु पर ऐसी दृष्टि जिसका प्रभाव बुरा पडे़ । नजर । उ॰— दूनी ह्वै लागी लगन दिए दिठौना दीठ । —बिहारी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—लगाना ।—लगाना । मुहा॰— दीठ उतारना या झाड़ना = मंत्र के द्वारा बुरी दृष्टि के प्रभाव दूर करना ।दीठ खा जाना = किसी की बुरी दृष्टि के सामने पड़ जाना । टोक में आना । हूँस में आना । (बच्चों के संबंध में आधिक बोलते हैं) । (किसी की) दीठ चढना, दीठ पर चढना = दे॰ 'दीठ खा जाना' । दीठ जलाना = नजर उतारने के लिये राई लोन या कपड़ा जलाना । विशेष— जब बच्चों को नजर लगने का संदेह स्त्रियों को होता है तब वें टोटके के लिये उसके ऊपर के राई लोन घुमाकर आग में डालती हैं, अथवा जिस किसी को वे नजर लगानेवाला समझती हैं उसकी आँख की बरौनी किसी युक्ति से प्राप्त करके आग में जलाती हैं ।

५. देखने में प्रवृत्त नेत्र । देखने के लिये खुली हुई आँख । मुहा॰—टीठ उठाना = ताकने के लिये आँख ऊपर करना । दीठ गड़ाना, जमाना = दृष्टि स्थिर करना । एकटक ताकना । दीठ चुराना = (लज्जा या भय से) सामने न आना । जान बूझ कर दिखाई न पड़ना । दीठ जुड़ना = आँख मिलना । साक्षात्कार होना । देखादेखी होना । दीठ जोड़ना = आँख मिलाना । साक्षात्कार करना । देखादेखी करना । दीठ फिसलना = चमक दमक के कारण नजर न ठहरना । आँख में चकाचौंध होना । दिठ भर देखना = जितनी देर तक इच्छा हो उतनी देर तक देखना । जो भरकर ताकना । दीठ मारना = (१) आँख से इशारा करना । पलक गिराकर संकेत करना । (२) आँख के इशारे से रोकना । दीठ मिलना = दे॰ 'दीठ जुड़ना' । दीठ मिलना = दे॰ 'दीठ जोड़ना' । दीठ लगना = देखादेखी होने से प्रेम होना । प्रीति होना । उ॰— नंददास नँदरानी छबि निरखि बारि पीवत पानी, काहू जिनि दीठ लगे ।— नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ ३३९ । दीठ लड़ना = आँख के सामने आँख होना । घूराघूरी होना । दीठ लड़ाना = आँख के सामने आँख किए रहना । घूरना ।

६. देख भाल । देख रेख । निगरानी । क्रि॰ प्र॰—रखना ।

७. परख । पहचान । तमीज । अटकल । अंदाज । क्रि॰ प्र॰— रखना ।

८. कृपादृष्टि । हित का ध्यान । मिहरबानी की नजर । उ॰— बिरवा लाइ न सूखइ दोजै । पावै पानि दीठि सो कीजै ।— जायसी (शब्द॰) ।

९. आशा की दृष्टि । आसरे में लगी हुई टकटकी । आस । उम्मीद । क्रि॰ प्र॰—लगना ।—लगाना ।

१०. ध्यान । विचार । संकल्प । उद्देश्य । क्रि॰ प्र॰—रखना ।