दुर्योधन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दुर्योधन संज्ञा पुं॰ [सं॰] कुरुवंशीय राजा धृतराष्ट्र के १०१ पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र का नाम । विशेष—यह अपने चचेरे भाई पांडवों से बहुत बुरा मानता था । सबसे अधिक द्वेष यह भीम से रखता था । बात यह थी कि भीम के समान दुर्योधन भी गदा चलाने में अत्यंत निपुण था, पर वह भीम की बराबरी नहीं कर सकता था । पहले धृतराष्ट्र युधिष्ठिर को ही सब में बड़ा समझ युवराज बनाना चाहते थे, पर दुर्योधन ने बहुत आपत्ति की और छल से पांडवो को वन में भेज दिया । बनवास से लौटकर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ में अपनी राजधानी बसाई और युधिष्ठिर ने धूमधाम से राजसूय यज्ञ किया । उस यज्ञ में पांडवों का भारी वैभव देख दुर्योधन जल उठा और उनके नाश का उपाय सोचने लगा । अंत में उसने युधिष्ठिर को अपने साथ पासा खेलने के लिये बुलाया । उस खेल में दुर्योधन के मामा गांघार के राजकुमार शकुनि के छल और कौशल से युधिष्ठिर अपना सारा राज्य और धन यहाँ तक कि द्रौपदी की भी हार गए । दुःशासन द्रौपदी की बलात् सभा में लाया और दुर्योधन उसे अपने जघे पर बैठने के लिये कहने लगा । इसपर भीम ने अपनी गदा से दुर्योधन के जंघे को तोड़ने की प्रतिज्ञा की । अंत में द्यूत के नियमानुसार धृतराष्ट्र ने यह निर्णय किया कि पांडव बारह वर्ष बनवास और एक वर्ष अज्ञातवास करें । जब अज्ञातवास पुरा हो गया तब कृष्ण दूत होकर कौरवों के पास पांडवों की ओर से गए । प र दुर्योधन ने पांडवों को राज्य का अंश क्या, पाँच गाँव तक देना अस्वीकार कर दिया । अंत में कुरुक्षेत्र का प्रसिद्ध युद्ध हुआ जिसमें कौरव मारे गए और भीम ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की । दुर्योधन को युधिष्ठिर 'सुयोधन' कहा करते थे ।

दुर्योधन ^२ वि॰ [सं॰] दे॰ 'दुर्योध' ।