दृष्टांत

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दृष्टांत संज्ञा पुं॰ [सं॰ दृष्टान्त]

१. अज्ञात वस्तुओं या व्यापारों आदि का धर्म आदि बतलातो हुए समझाने के लिये समान धर्मवाली किसी ऐसी वस्तु या व्यापार का कथन जो सबको विदित हो । उदाहरण । मिसाल । जैसे,—(क) बहुत से पत्ते गोल होते है, जैसे, कमल के । (ख) जब मनुष्य एक बार पतित हो जाता है तब बराबर पतित ही होता जाता है । जैसे,— पत्थर का गोला जब पहाड़ पर से लुढ़कता है तब गिरता ही जाता है । इस दूसरे वाक्य में पत्थर के गोले के दृष्टांत द्वारा मनुष्य के पतित होने की दशा समझाई गई है । विशेष—न्यग्य के सोलह पदार्थों में से दृष्टांत भी एक है । न्याय के अनुसार जिस पदार्थ के संबंध में लौकिक (साधारण) जनों और परीक्षकों (तार्किकों) का एक मत हो उसे दृष्टांत कहते हैं । ऐसी प्रत्यक्ष बात जिसे सब जानते या मानते हों दृष्टांत है । 'जहाँ धूआँ होता है वहाँ आग होती है', इस बात को कहकर किसी ने कहा 'जैसे रसोईधर में' तो यह दृष्टांत हुआ । न्याय के अवयवों में उदाहरण के लिये इसकी कल्पना होती है अर्थात जिस दृष्टांत का व्यवहार तर्क में होता है उसे उदाहरण कहते हैं ।

२. एक अर्थालंकार जिसमें एक ओर तो उपमेय और उसके साधारण धर्म का वर्णन और दूसरी ओर बिंब प्रतिबिंब भाव से उपमान और उसके साधारण धर्म का वर्णन होता है । जैसे,— दुसह दुराज प्रजानि को क्यों न करे अति दंद । अधिक अँधेरो जग करत मिलि माक्स रविचंद ।—बिहारी । यहाँ उपमेय दुराज में अधिक द्वंद्व या अँधेरे का होना और उसी के अनुसार उपमान रविचंद मिलन में अधिक अँधेरे का होना वर्णित है । प्रतिवस्तूपमा से इस अलंकार में यह भेद है कि प्रतिवस्तूपमा में शब्दभेद से एक ही वस्तु का कथन होता है पर इसमें धर्म भिन्न भिन्न (जैसे, द्वंद्व होना और अँधेरा होना) होते हैं । पंडितराज जगन्नाथ ने इन दोनों में बहुत कम भेद माना है और कहा है कि इन्हें एक ही अलंकार के दो भेद सम- झना चाहिए ।

३. शास्त्र ।

४. मरण ।