देवदत्त
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]देवदत्त ^१ वि॰ [सं॰]
१. देवता का दिया हुआ । देवता से प्राप्त ।
२. जो देवता के निमित्त दिया गया हो ।
देवदत्त ^२ संज्ञा पुं॰
१. देवता के निमित्त दान की हूई संपत्ति ।
२. शरीर की पाँच वायुओं में से एक जिससे जँभाई आती है ।
३. अर्जुन के शंख का नाम ।
४. अष्टकुल नागों में से एक ।
५. शाक्यवंशीय एक राजकुमार जो गौतम बुद्ध का चचेरा भाई था और उनसे बहुत बुरा मानता था । विशेष—बुद्ध और देवदत्त दोनों ही साथ पले थे, इससे सब बातों में बुद्ध को विशेष कुशल और तेजस्वी देखकर वह मन ही मन बहुत चिढ़ता था । यशोधरा से पहले यही विवाह करना चाहता था । जब यशोधरा ने बुद्ध को स्वीकार कर लिया तब यह और भी जला और बदला लेने की ताक में रहने लगा । गौतम के बुद्धत्व प्राप्त करने पर भी इसने द्बेष न छोड़ा । अवदानशतक में लिखा है कि बुद्ध जिस समय जेतवन आराम में ठहरे थे, देवदत्त ने उन्हें मारने के लिये बहुत से घातक भेजे थे । पीछे से यह बुद्ध के संघ में मिल गया था और अनेक प्रकार के उपाय बुद्ध और संघ को हानि पहुँचाने के लिये किया करता था । कौशांबी में आनंद और सारिपुत्र मौदगलायन की प्रधानता से कुढ़कर यह संघ छोड़कर राजगृह चला गया और वहाँ अजातशत्रु को मिलाकर उसने बुद्ध को अनेक प्रकार के कष्ट पहुँचाए, उनपर मत्त हाथी छुड़वाया, पत्थर लुढ़कवाया । अंत मे जब वह कुष्ट रोग आदि से पीड़ित और जीवन से निराश हुआ तब बुद्ध से क्षमा माँगने के लिये चला । बुद्ध ने उसे आता सुनकर कहा वह मेरे पास नहीं आ सकता । संयोगवश वह आने के पहले तालाब में नहाने घुसा और वहीं कीचड़ में फँसकर मर गया ।