सामग्री पर जाएँ

देह

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

[सम्पादन]

शब्दसागर

[सम्पादन]

देह ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] [वि॰ देही ]

२. शरीर । तन । बदन । उ॰— (क) नाम एकतनु हेत तेहि देह न धरी बहोरि ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) अपराध बिना ऋषि देह धरी ।—केशव (शब्द॰) । (ज) है हिय रहते हुई छई नई युक्ति यह जोय । आँखिन आँखि लगी रहै देह दूबरी होय ।—बिहारी (शब्द॰) । विशेष—शऱीर आरंभ काल में कुछ दिनों तक बराबर बढ़ता है इससे उसका नाम देह ( दिह = वृद्धि) है । न्याय के मत से पार्थिव देह दो प्रकार की होती है योनिज और अयोनिज । जरायुज और अंडज योनिज तथा स्वेदज और उद्रिज्ज अयोनिज कहलाते हैं । शुक्र शोणित आदि की योजना से स्वतंत्र अलोकिक देह को (जैसे, नारद आदि की) भी अयोनिज कहते हैं । इसी प्रकार सांख्य आदि के मत से स्थू ल और सूक्ष्म आदि भी शऱीर के भेद माने गए हैं । विशेष दे॰ 'शरीर' । मुहा॰—देह छूटना = जीवन समाप्त होना । मृत्यु होना । देह छोड़ना = मरना ।—उ॰—मम कर तीरथ छाँड़िहि देहा ।— तुलसी (शब्द॰) । देह घरना = जन्म लेना । उ॰—देह धरे कर यह फल पाई । भजहू राम सब काम बिहाई ।— तुलसी (शब्द॰) । देह लेना = दे॰ 'देह घरना' । देह बिसारना = तन की सुधि न रखना । होश हवास न रखना ।

२. शरीर का कोई अंग ।

३. जीवन । जिंदगी । उ॰—(क) सेइय सहित सनेह देह भरि कामधेनु कलि कासी ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) जन्म जहाँ तहाँ रावरे सों निबहै भरि देह सनेह सगाई ।—तुलसी (शब्द॰) ।

४. विग्रह । मूर्ति । चित्र ।

देह ^२ संज्ञा पुं॰ [फा़॰] गाँब । खेडा़ । मौजा । जैसे, गंगा अहीर, साकिन देह... । यौ॰देहकान । देहात ।