दैव
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]दैव ^१ वि॰ [सं॰] [वि॰ स्त्री॰ दैवी]
१. देवता संबंधी । जैसे, दैव कार्य, दैवश्राद्ध ।
२. देवता के द्वारा होनेवाला । जैसे, दैवगति, दैवघंटना ।
३. देवता को अर्पित ।
दैव ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. योगियों के योग में होनेवाले पाँच प्रकार के विघ्नों में से एक प्रकार का विघ्न या उपसर्ग जिसमें योगी उन्मत्तों की तरह आँखें बंद करके चारों ओर देखता है (माकँडेय पुराण) ।
२. वह अर्जित शुभाशुभ कर्म जो फल देनेवाला हो । प्रारब्ध । अदृष्ट । भाग्य । होनेवाली बात या फल । होनी । विशेष—मत्स्यपुराण में जब मनु ने मत्स्य से पूछा कि दैव और पुरुषकार दोनों में कौन श्रेष्ठ है, तब मत्स्य ने कहा—'पूर्व जन्म के जो भले बुरे अर्जित कर्म रहते हैं वे ही वर्तमान जन्म में दैव या भाग्य होते हैं । दैव यदि प्रतिकूल हो तो पौरुष से उसका नाश भी हो सकता है । यदि पूर्व जन्म के कर्म अच्छे हों तो भी बिना पौरुष के वे कुछ भी फल नहीं दे सकते अतः पौरुष श्रेष्ठ है । यौ॰—दैवगति । दैवय़ज्ञ ।
२. विधाता । ईश्वर । जैसे,—दुर्लब को दैव भी सताता है । मुहा॰—(किसी को) दैव लगना = (किसी पर) ईश्वर का कोप होना । बुरे दिन आना । शामत आना ।
३. आकाश । आसमान । मुहा॰—दैव बरसना = मेंह बरसना । पानी बरसना ।
४. एक प्रकार का श्राद्ध । दैवश्राद्ध (को॰) ।
५. दे॰ 'दैवतीर्थ' (को॰) ।