दोहद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दोहद संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. गर्भवाली स्त्री की इच्छा । उकौना । उ॰—प्रथम दोहदै क्यौं करौं निष्फल सुनि यह बात ।—केशव (शब्द॰) ।

२. गर्भवती स्त्री की मतली इत्यादि ।

३. गर्भा- वस्था ।

४. गर्भ का चिह्न ।

५. गर्भ ।

६. एक प्राचीन विश्वास । कविसमय । कविप्रसिद्धि । विशेष— इसके अनुसार सुंदर स्त्री के स्पर्श से प्रियंगु, पान की पीक थूकने से मौलसिरी, चरणाघात से अशोक, दृष्टिपात से तिलक, आलिंगन से कुर्वक, मृदुवार्ता से मंदार, हँसी से पटु, फूँक मारने से चंपा, मधुर गान से आप और नाचने से कच- नार इत्यादि वृक्ष फूलते हैं । इस संबंध में संस्कृत साहित्य में निम्नांकित श्लोक प्रचलित है—'स्त्रीणां स्पर्शात् प्रियंगुर्विकसति बकुलःशीधुगंडूष सेकात्' । पादाघातादशोकस्तिलककुरवकौ वीक्षणालिंगनाभ्याम् । मंदारी नर्मवाक्यात् पटु मृदुहमनात् चम्पको /?/क्त्रवातात् । चूतो गीतान्नमेरुर्विकसति च पुरो नर्त- नात् कर्णिकारः ।

७. फलित ज्योतिष के अनुसार यात्रा के समय दिशा, वार या तिथि के भेद से उनके दोष की शांति के लिये खाए या पीए जानेवाले कुछ निश्चित पदार्थ । विशेष—इनको अलग अलग दिग्दोहद, वारदोहद और तिथि- दोहद कहते हैं । जैसे,—यदि पूर्व की ओर जाने में कोई दोष हो, तो उसकी शांति घी खाने से होती है । पश्चिम जाने में कोई दोष हो तो वह मछली खाने से, दक्षिण की ओर का दोष तिल की खीर खाने से और उत्तर की ओर का दोष दूध पीने से शांत होता है । इसी प्रकार रविवार को घी, सोमवार को दूध, मंगल को गुड़, बुध को तिल, बृहस्पति को दही, शुक्र को जौ और शनिवार को उंडद खाने से यात्रा संबंधी वारदोष की शांति हो जाती है । प्रतिपदा को मदार का पत्ता, द्वितीया को चावल का धोया हुआ पानी, तृतीया को घी आदि खाने से यात्रा संबंधी तिथिदोष की शांति हो जाती है । इस प्रकार दोहद से किसी दिशा, वार या तिथि की यात्रा से होनेवाले समस्त अनिष्टों या दुष्ट फलों का निवारण हो जाता है ।