दोही

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

दोही ^१ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ दो] एक छंद जो दोहे की भाँति चार चरणों का होने पर भी दो ही पंक्तियों में लिखा जाता है । इसके पहले और तीसरे चरण में पंद्रह पंद्रह मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे चरण में ग्यारह ग्यारह मात्राएँ होती हैं । इसके अंत में एक लघु होना चाहिए । जैसे—विरद सुमिरि सुधि करत नित ही, हरि तुव चरन निहार । यह भव जल निधि तें मुहिं तुरत, कब प्रभु करिहहु पार ।

दोही ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ दोहिन]

१. दूध दुहनेवाला ।

२. ग्वाला ।