द्रोणाचार्य

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

द्रोणाचार्य संज्ञा पुं॰ [सं॰] महाभारत में प्रसिद्ध ब्राह्मण वीर जिनसे कौरवों और पांडवों ने अस्त्रशिक्षा पाई थी । विशेष— इनकी कथा इस प्रकार है । गंगाद्वार (हरद्वार) के पास भरद्वाज नाम के एक ऋषि रहते थे । वे एक दिन गंगा- स्नान करने जाते थे, इसी बीच घृताची नाम की अप्सरा नहाकर निकल रही थी । उसका वस्त्र छूटकर गीर पड़ा । ऋषि उसे देखकर कामार्त हुए और उनका वीर्यपात हो गया । ऋषि ने उस वीर्य को द्रोण नामक यज्ञपात्र मे रख छोड़ा । उसी द्रोण से जो तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम द्रोण पड़ा । भरद्वाज ने अपने शिष्य अग्निवेश को जो अस्त्र दिए थे आग्निवेश ने वे सब द्रोण को दिए । भरद्वाज के शरीरपात के उपरांत द्रोण ने शरद्वान् की कन्या कृपी के साथ विवाह किया जिससे उन्हें अश्वत्थामा नामक वीर पुत्र उत्पन्न हुआ जिसने जन्म लेते ही उच्चैःश्रवा घोडे़ के समान घोर शब्द किया । द्रोण ने महेंद्र पर्वत पर जाकर परशुराम से अस्त्र और शस्त्र की शिक्षा पाई । वहाँ से लौटने पर इनके दिन दरिद्रता में बीतने लगे । पृषत नामक एक राजा भरद्वाज के सखा थे । उनका पुत्र दुपद आश्रम पर आकर द्रोण के साथ खेलता था । द्रुपद जब उत्तर पांचाल का राजा हुआ तब द्रोण उसके पास गए और उन्होंने उसे अपनी बालमैत्री का परिचय दिया । पर द्रुपद ने राजमद के कारण उनका तिरस्कार कर दिया । इसपर दुःखित और क्रुद्ध होकर द्रोणा- चार्य हस्तिनापुर चले गए और वहाँ अपने साले कृपाचार्य के यहाँ ठहरे । एक दिन युधिष्ठिर आदि राजकुमार गेंद खेल रहे थे । उनका गेंद कूएँ में गिर पड़ा । बहुत यत्न करने पर भी वह गेंद नहीं निकलता था, इसी बीच में द्रोण उधर से निकले और उन्होंने अपने बाणों से मार मारकर गेंद को कूएँ के बाहर कर दिया । जब यह खबर भीष्म को लगी तब उन्होंने द्रोण को राजकुमारों की अस्त्रशिक्षा के लिये नियुक्त किया । तब से वे द्रोणाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए । इन्हीं की शक्षा के प्रताप से कौरव और पाडंव ऐसे बडे़ धनुर्धर और अस्त्रकुशल हुए । द्रोणाचार्य के सब शिष्यों में अर्जुन श्रेष्ठ थे । अस्त्रशिक्षा दे चुकने पर द्रोणाचार्यने कौरवों और पांडवों से कहा,—'हमारी गुरुदक्षिणा यही है कि द्रुपद राजा को बाँधकर हमारे पास लाओ । 'कौरवो और पांडवों ने पंचाल देश पर चढ़ाई की । अर्जुन द्रुपद को युद्ध में हराकर उसे द्रोणाचार्य के पास पकड़कर लाए । द्रोणाचार्य ने द्रुपद को यही कहकर छोड़ दिया कि 'तुमने कहा था कि राज का मित्र राजा ही हो सकता है, अतः भागीरथी के दक्षिण में तुम राज्य करो, उत्तर में मैं राज्य करूँगा ।' द्रुपद के मन में इस बात की बड़ी कसक रही । उन्होने ऋषियों की सहायता से पुत्रेष्टि यज्ञ द्रोण को मारनेवाले पुत्र की कामना से किया । यज्ञ के प्रभाव से उसे धृष्टद्युम्न नामक पुत्र और कृष्णा (द्रौपदी) नाम की कन्या हुई । कुरुक्षेत्र के युद्ध में द्रोणा- चार्य ने नौ दिन तक कौरवों की ओर से घोर युद्ध किया ।