द्रौपदी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]द्रौपदी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] राजा द्रुपद की कन्या कृष्णा जो पाँचो पांडवों को ब्याही गई थी । विशेष— राजा द्रुपद ने जब द्रोण को मारनेवाले पुत्र की कामना से पुत्रेष्टि यज्ञ किया था तब उसे धृष्टद्युम्न नाम का एक पुत्र और कृष्णा नाम की कन्या उत्पन्न हुई थई । जब कन्या बड़ी हुई तब द्रुपद ने उसका विवाह अर्जुन से करना विचारा । पर लाक्षागृह में आग लगने के उपरांत जब पांडवों का पता वहुत दिनों तक ल नगा तब द्रुपद ने उपयुक्त वर प्राप्त करने के लिये धूमधाम से एक स्वयंवर रचा । उसमें ऊपर एक मछली टाँग दी गई जिससे कुछ नीचे हटकर एक चक्र घूम रहा था । द्रुपद ने प्रतिज्ञा की कि जो कोई उस मछली की आँख को बाण से बेधेगा उसी को द्रौपदी दी जायगी । स्वयंवर में बहुत दूर दूर से राजा लोग आए थे, पाँचो पांडव भई घूमते घूमते ब्राह्मण के वेश में वहाँ पहुँचे । चब कोई क्षत्रिय लक्ष्यभेद न कर सका तब कर्ण उठा । पर द्रौपदी ने कहा कि मैं सूतपुत्र के साथ विवाह नहीं कर सकती । अंत में ब्राह्मण वेशधारी अर्जुन ने उठकर लक्ष्यभेद किया । पाँचो पांडव उन दिनों गुप्त रूप से ए क ब्राह्मण के यहाँ माता सहित रहते थे । अतः द्रौपदी को लेकर पाँचो भाई ब्राह्मण के आश्रम पर गए और द्वार पर माता को पुकार कर बोले माँ, आज हग लोग एक रमणीय भिक्षा माँगकर लाए हैं । कुंती ने भीतर से कहा, अच्छी बात है, पाँचो भाई मिलकर भोग करो । माता के वचन की रक्षा के लिये पाँचो भाइयों ने द्रौपदी को ग्रहण किया । नारद के सामने यह प्रतिज्ञा की गई कि जिस समय एक भाई द्रौपदी के पास हौ उस समय दूसरा वहाँ न जाय, यदि जाय ते बारह वर्ष उसे बनवास करना पडे़ । दुर्योधन के सथ जुवा खेलते खेलते युधिष्ठिर जब सब कुछ हार गए तब द्रौपदी को भी हार गए । इसपर दुर्योधन ने भरी सभा में दुःशासन के द्वारा द्रौपदी को पकड़ बुलाया । दुःशासन भरी सभा के बीच उसका वस्त्र खींचना चाहता था पर वस्त्र न खिंच सका । इस अपमान पर कुपित होकर भीम ने प्रतिज्ञा की कि दुर्योधन, जिस जंघे को तूने द्रौपदी को दिखाया है उसे मैं अवश्य तोडूँगा और दुःशासन का बायाँ हाथ तोड़कर उसके कलेजे का रक्तपान करूँगा । कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीम ने अपनी यह प्रतिज्ञा पूरी की । पुराणों में द्रौपदी की गणना पंचकन्याओं में है । पर्या॰— कुष्णा । पांचाली । सेरिंध्री । नित्ययौवना । याज्ञसेनी । बेदिजा ।