द्वैत

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

द्वैत संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. दो का भाव । युग्म । युगल ।

२. अपने और पराए का भाव । भेद । अंतर । भेदभाव । उ॰—सेवत साधु द्वैत भय भागै । श्री रघुबीर चरन चित लागै ।— तुलसी (शब्द॰) ।

३. दुबधा । भ्रम । उ॰—सुख संगति सुख द्वैत सों समुझै नाहि गवाँर । बात करै अद्वैत की पढ़ि गुनि भया लबार ।—कबीर (शब्द॰) ।

४. अज्ञान । उ॰— माधव अब न द्रवहु केहि लेखे । प्रणतपाल प्रण तोर, मोर प्रण जियहुं कमलपद देखे ।...जनक जननि गुरु बंधु सुहृद पति सब प्रकार हितकारी । द्वैत रूप तम कूप परों नहीं सो कछु जतन बिचारी ।—तुलसी (सब्द॰) ।

५. द्वैतवाद ।