धक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]धक ^१ संज्ञा स्त्री॰ [अनु॰]
१. दिल के धड़कने का शब्द या भाव । हृत्कंप का शब्द या भाव । हृदय के जल्दी जल्दी चलने, कूदने का भाव या शब्द । (भय या उद्वेग होने अर्थात् किसी बात से चौंक पड़ने पर जी में धड़कन होती है) । उ॰—गुंधर हौं निरखीं अब लौं मुख पीरी परी छतियाँ धक छाई ।— गुंधर (शब्द॰) । मुहा॰—जी धक धक करना = भय या उद्वेग से जी धड़कना । जी धक हो जाना = (१) भय या उद्वेग से जी धड़क उठना । डर से जी दहल जाना । (२) चौंक उठना । जी धक होना, या धक से होना = (१) उद्वेग या घबराहट होना । (२) आशंका होना । भय होना । जी दहलना । धक से रह जाना = दे॰ 'जी धक होना या धक से रह जाना' । उ॰—हुस्न आरा और उनकी कुल बहनें और भी मुगलानी और अब्बासी घक से रह गई ।—फिसाना॰, आ॰ १, पृ॰ २९१ । विशेष—इस शब्द का प्रयोग खट, पट आदि और अनु॰ शब्दों के समान प्रायः से विभक्ति सहित क्रि॰ वि॰ वत् ही होता है ।
२. उमंग । उद्वेग । चोप । उ॰—रहत अछक पै मिटै न धक जीवन की निपट जो नाँगी डर काहू के डरै नहीं ।—भूषण (शब्द॰) ।
धक ^२ क्रि॰ वि॰ अचानक । एकबारगी । उ॰—आनन सीकर सी कहिए धक सोवत तें अकुलाय उठी क्यों ?—केशव (शब्द॰) ।
धक ^३ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] छोटी जूँ । लीख से बड़ी जूँ ।