धज्जी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]धज्जी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ धटी]
१. कपड़े, कागज, चमड़े इत्यादि (चद्दर के रूप की वस्तुओं) की कटी हुई लंबी पतली पट्टी । कटा हुआ लंबा पतला टुकड़ा ।
२. लोहे की चद्दर या लकड़ी के पतले तख्ते की अलग की हुई लंबी पट्टी । मुहा॰—धज्जियाँ उड़ना = (१) फट या कटकर टुकड़े टुकड़े हो जाना । विदीर्ण होना । पुरजे पुरजे होना । (२) (किसी की) खूब दुर्गति होना । निंदा या तिरस्कार होना । दोषों का खूब उधेड़ा जाना । धज्जियाँ उड़ाना = (१) टुकड़े टुकड़े करना । विदीर्ण करना । खंड खंड करना । (२) (किसी के) दोषों को खूब उधेड़ना । दुंर्गति करना । निंदा या उपहास करना । उ॰—धज्जियाँ उड़ाते दहलते जो नहीं । सिर उतारते किसलिये वे सी फरें ।—चुभते॰, पु॰ ९ । (३) मारकर टुकड़े टुकड़े करना । बोटी बोटी काट डालना । धज्जियाँ लगना = गरीबी से कपड़े फटे रहना । बहुत गरीबी आना । धज्जियाँ लेना = निंदा या उपहास करना । (किसी के) दोषों को उधेड़ना । बनाना । दुगंति करना । धज्जी हो जाना = सूखकर ठठरी हो जाना । बहुत दुबला पतला हो जाना । अत्यंत दुर्बल और अशक्त हो जाना (रोग आदि के कारण) ।