धनंजय
दिखावट
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]धनंजय ^१ वि॰ [सं॰ धनञ्जय] धन को जीतने अर्थात् प्रास करनेवाला ।
धनंजय ^२ संज्ञा पुं॰
१. अग्नि । उ॰—असंजोग ते कहुँ कहैं, एक अर्थ कबिराई । कहें धनंजय धूम बिनु, पावक जान्यों जाइ ।— भिखारी॰, ग्र॰, भा॰ २, पृ॰ ७ । विशेष—इनकी पूजा से धन की प्राप्त होती है ।
२. चित्रक वृक्ष । चीता ।
३. अर्जुन का एक नाम ।
४. अर्जुन वुक्ष ।
५. विष्णु ।
६. एक नाग का नाम जो जलाशयों का अधिपति कहा गया है ।
७. शरीरस्थ पाँच वायुओं में से एक । विशेष—यह वायु पोषण करनेवाली मानी गई है (वेदांतसार) । सुबोधिनी टोका में लिखा है कि यह मरने पर भी वनी रहती है । इससे शरीर फूलता है । ललाट, स्कंध, हृदय, नाभि, अस्थि और त्वचा इसके रहने के स्थान कहे गए हैं ।