धन्वन्तरि

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

धन्वंतरि संज्ञा पुं॰ [सं॰ धन्वन्तरि]

१. देवताओं के वैद्य जो पुराणा- नुसार समुद्रमंथन के समय और सब वस्तुओं के साथ समुद्र से निकले थे । विशेष—हरिवंश में लिखा है कि जब ये समुद्र से निकले तब तेज से दिशाएँ जगमगा उठीं । ये सामने विष्णु को देखकर ठिठक रहे, इसपर विष्णु भगवान् ने इन्हें अब्ज कहकर पुकारा । भगवान् के पुकारने पर इन्होंने उनसे प्रार्थना की कि यज्ञ में मेरा भाग और स्थान नियत कर दिया जाय । विष्णु ने कहा भाग और स्थान तो बँट गए हैं पर तुम दूसरे जन्म में विशेष सिद्धिलाई करोगे, अणिमादि सिद्धियाँ तुम्हें गर्भ से ही प्राप्त रहेंगी और तुम सशरीर देवत्वलाभ करोगे । तुम आयुवेद को आठ भागों में विभक्त करोगे । द्वापर युग में काशिराज 'धन्व' ने पुत्र के लिये तपस्या और अब्जदेव की आराधना की । अब्जदेव ने धन्व के घर स्वयं अवतार लिया और भरद्वाज ऋषि से आयुर्वेद शास्त्र अध्ययन करके प्रजा को रोगमुक्त किया । भावप्रकाश में लिखा है कि इंद्र ने आयुर्वेद शास्त्र सिखाकर धन्वंतरि को लोक के कल्याण के लिये पृथ्वी पर भेजा । धन्वंतरि काशी में उत्पन्न हुए और ब्रह्मा के वर से काशी के राजा हुए । महाराज विक्रमादित्य की सभा के जो नव- रत्न गिनाए गए हैं उनमें भी एक धन्वंतरि का नाम है । पर जब नवरत्नवाली बात ही कल्पित है तब इन धन्वंतरि का पता लगना कठिन ही है ।

२. विकमादित्य के नवरत्नों में से एक (को॰) ।

३. सूर्य (को॰) ।