धर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

धर ^१ वि॰ [सं॰] [वि॰ स्त्री॰ धरा, धरी]

१. धारण करनेवाला । ऊपर लेनेवाला । सँभालनेवाला । जैसे, अक्षधर, अंशुधर, असृग्धर, गदाधर, गंगाधर, दिव्यांबरधर, भूधर, महीधर आदिं । उ॰—स्वाद तोष सम सुगंति सुधा के । कमठ सेष सम धर वसुधा के ।—मानस, १ ।२० ।

२. ग्रहण करनेवाला । थामनेवाला । जैसे, चक्रधर, धनुर्धर, मुरलीधर । विशेष—इन अर्थो में इस शब्द का प्रयोग समस्त पदों में ही होता हैं ।

धर ^२ संज्ञा पुं॰

१. पर्वत । पहाड़ ।

२. कपास का डोडा ।

३. कूर्म- राज । कच्छप जो पृथ्वी को ऊपर लिए है ।

४. एक वसु का नाम ।

५. विष्णु ।

६. श्रीकृष्ण ।

७. विट । व्यभिचारी पुरुष ।

धर ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ धरा] पृथ्वी । धरती । उ॰—(क) धर, कोइ जीव न जानौं मुख रे बकत कुबोल ।—जायसी ग्रं॰ पृ॰ ८३ । (ख) कान्ह जनमदिन सुर नर फूले । नभ धर निसिबासर समतूले ।—भिखारी॰ ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ २२९ ।

धर ^४ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ धरना] धरने या पकड़ने की क्रिया ।

धर पु ^५ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ धरा] पृथ्वी । धरती । उ॰ —(क) मानहु नेष अशेषधर धरनहार बरिबंड ।—केशव (शब्द॰) । (ख) सरजू सरिता तट नगर बसै बर । अवधनाम यशधाम धर ।—केशव (शब्द॰) ।

धर पु † ^६ संज्ञा सं॰ [हिं॰ धड़] दे॰ 'धड़' । उ॰—लाल अधर में कै सुधा, मधुर किए बिनु पान । कहा अधर में लेत हौ, धर में रहत न प्रान ।—भिखारी॰ ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ २४२ ।