धरना

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

धरना ^१ क्रि॰ सं॰ [सं॰ धरण]

१. किसी वस्तु को इस प्रकार द्दढ़ता से स्पर्श करना या हाथ में लेना कि वह जल्दी छूट न सके अथवा इधर उधर जा या हिल न सके । पकड़ना । थामना । ग्रहण करना । जैसे,—(क) चोर धरना । (ख) इसका हाथ लोर से धर रहो, नहीं तो भार जायगा । (ग) यह चिमटा अच्छी तरह धरती नहीं । य़ौ॰—करना धरना । धरना पकड़ना । संयो॰ क्रि॰—लेना । मुहा॰—धर दबाना या दबोचना = (१) पकड़कर वश में कर लेना । बलपूर्वक अधिकार में कर लेना । किसी पर इस प्रकार आ पड़ना कि वह विरोध या बचाव न कर सके । आक्रांत करना । जैसे,—कुत्ते ने बिल्ली को धर दबोचा । (२) तर्क या बिवाद में परास्त करना । धर पकड़कर = जबरदस्ती । बलात् । जैसे,—धर पकड़कर कहीं काम होता है ?

२. स्थापित करना । स्थित करना । रखना । ठहराना । जैसे,— (क) पुस्तक आले पर घर दो । (ख) बोझ सिर पर धर लो । उ॰—कौल खुले कच गूँदती मूँदती चारु नखक्षत अंगद के तरु । दोहद में राति के स्रमभार बड़े बल कै धरती पग भू परु ।—भिखारी ग्रं॰, २, पृ॰ २३७ । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना ।

३. पास रखना । कक्षा में रखना ।जैसे,—(क) वह हमारी पुस्तक धरे हुए है देता नहीं । (ख) यह चीज उनके यहाँ धर दो, कहीँ जायगी नहीं । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना । यौ॰—धर रखना । मुहा॰—धरा ढका = समय पर काम आने के लिये बचाकर रखी हुई वस्तु । संचित वस्तु । जैसे,—कुछ धरा ढका होगा, लाओ । धरा रह जाना = काम न आना । व्यर्थ हो जाना ।

४. धारण करना । देह पर रखना । पहनना । जैसे, सिर पर टीपी धरना । संयो॰ क्रि॰—देना ।—लेना । ५आरोपित करना । अवलंबन करना । अंगीकार करना । जैसे, रूप धरना, वेश धरना, धैर्य धरना ।

६. व्यवहार के लिये हाथ में लेना । ग्रहण करना । जैसे, हथियार धरना ।

७. सहायता या सहारे के लिये किसी को घेरना । पल्ला पकड़ना । आश्रय ग्रहण करना । जैसे—उन्हीं को धरो, वे ही कुछ कर सकते है ।

५. किसी फैलनेवाली वस्तु का किसी दूसरी वस्तु में लगाना या छू जाना । जैसे,—फूस गोला है इसी से आग धरती नहीं है ।

९. किसी स्त्री को रखना । बैठा लेना । रखेली की तरह रखना । उ॰—ब्याहो लाख, धरौ दस कुबरी अतहि कान्ह हमारी ।—सूर (शब्द॰) ।

१०. गिरवी रखना । गहन रखना । रेहन रखना । वंधक रखना । जैसे,—(क) अपनी चीज धरकर तब रुपया लाए है । (ख) कोई चीज धरकर भी तो रुपया नहीं देता ।

१४. अपनाना । ग्रहण करना । उ॰—पर जो मेरा गुण, कर्म, स्वभाव धरेंगे वे औरो को भी तार पार उतरेंगे ।—साकेत॰, पृ॰ २१६ ।

धरना ^२ संज्ञा पुं॰ कोई बात या प्रार्थना पूरी कराने के लिये किसी के पास या द्बार पर अड़कर बैठना और जबतक वह बात या प्रार्थना पूरी न कर दी जाय तबतक अन्न न ग्रहण करना । जैसे—हमारा रुपया न दोगे तो हम तुम्हारे दरवाजे पर धरना देंगे । दे॰ 'धरन' । क्रि प्र॰—देना ।—बैठाना ।