धर्मविजयी संज्ञा पुं॰ [सं॰] बह जो नम्रता या विनय ही से संतुष्ट हो जाय । विशेष— कौटिल्य के अनुसार दुर्बल राजा को पहले धर्मविजयी राजा का सहारा लेना चाहिए ।