धव

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

धव संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक जंगली पेड़ जिसकी पत्तियाँ अमरूद या शरीफे की पत्तियों जैसी होती हैं । उ॰— कुतक खिदर धव काठरा, विदर पजावण वेस ।—बाँकी॰, ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ८६ । विशेष— इसकी छाल सफेद और चिकनी तथा हीर की लकड़ी बहुत कड़ी और चमकीली होती है । फल छोटे छोटे होते हैं । इसकी कई जातियाँ होती हैं जो हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण भारत तक पाई जाती हैं । बड़ी जाति का जो पेड़ होता है उसे धौरा या बासली कहते हैं । इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है और नाव, खेती के सामान आदि बनाने के काम में आती है । कोयला भी इसका बहुत अच्छा होता है । पत्तियों से चमड़ा सिझाया और कमाया जाता है । इसके पेड़ से एक प्रकार का गोंद निकलता है जिसे छींट छापनेवाले काम में लाते हैं । छोटी जाति का पेड़ विंध्य पर्वत पर तथा दक्षिण भारत की ओर होता है । धव के नाम से प्रायः यही अधिक प्रसिद्ध है और दवा के काम में आता है । वैद्यक में धव चरपरा कसैला, कफवातनाशक, पित्तनाशक, दीपन, रुचिवर्धक और पांडुरोग को दूर करनेवाला माना जाता है । पत्ती, फल और जड़ तीनों दवा के काम में आते हैं । पर्या॰—पिशाचवृक्ष । शकटाख्य । धुरंधर । दृढ़तरु । गौर । कषाय । मधुरत्वक् । शुष्कांग । पांडुवरु । धवल । पांडुर । घट । नंदितरु । स्थिर । पीतफल ।

२. पति । स्वामी । जैसे, माधव ।

३. पुरुष । मर्द ।

४. धूर्त । आदमी ।

५. एक वसु का नाम ।