धार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]धार ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. जोर से पानी बरसना । जोर की वर्षा । उ॰—धार से निखरे हुए ऋतु के सुहाए बाग में । आम भरने के न झोले बन गए तो क्या हुआ ?—बेला पृ॰ ६६ ।
२. इकट्ठा किया हुआ वर्षा का जल जो वैद्यक के अनुसार त्रिदोष नाशक, लघु, सौम्य, रसायन, बलकारक, तृप्तिकर और पातक तथा मुर्छा, तंद्रा, दाह, थकावट और प्यास आदि को दूर करनेवाला है । कहते है, सावन और भादों में यह जल बहुत ही हितकारक होता है । विशेष—वैद्यक के अनुसार यह जल दो प्रकार का होता है—गांग और समुद्र । आकाशगंगा से जल लेकर मेघ जो जल बर- साते है वह गंगा कहलाता है और अधिक उतम माना जाता है; और समुद्र से जो जल लेकर मेघ वर्षा करते हैं वह जल सामुद्र कहलाता है । अश्विन मास में यदि सूर्य स्वाती और विशाषा नक्षत्र में हो तो उस महीने की बर्षा का जल गांग होता है । इसके अतिरिक्त शेष, जल सामुद्र होता है । साधारणतः सामुद्र जल खारा, नमकीन, शुक्रानाशक, दृष्टि के लिये हानिकारक, बलनाशक और दोषप्रदायक माना जाता है । पर अगस्त तारे के उदय होने कते उपरांत सामुद्र जल भी गांग जल की तरह गुणकारी । माना जाता है ।
३. ऋण । उधार । कर्ज ।
४. प्रांत । प्रदेश ।
धार ^२ वि॰ [सं॰] गंभीर । गहरा ।
धार ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ धारा]
१. किसी आधार से लगे हु ए अथवा निराधार द्रव पदार्थ की गतिपरंपरा । अखंड़ प्रवाह । पानी आदि के गिरने या बहने का तार । जैसे, नदी की धार, पेशाब की धार, खून की धार । उ॰— गुरु सिष सार धार एक जानी । ज्यों जल मिलि जलधार समानी ।— घट॰, पृ॰ २४९ । यौ॰— धारधूरा । मुहा॰— धार चढ़ाना = किसी देवी देवता या पवित्र नदी आदि पर दूध जल आदि चढ़ाना । धार टूटना = गिरने का प्रवाह खंड़ित होना । लगाकर गिरना या निकलना बंद हो जाना । धार देना = (१) दूध देना । (२) कोई उपयोगी काम करना । (व्यंग्ग) । जैसे,—यहाँ बैठे हुए क्या धार देते हो ? (३) दे॰ 'धार चढ़ाना' । धार निकलना = दूध दूहना । स्तनों से दूध निकालना । धार मारना = जोर से पेशाब करना । (किसी चीज पर) धार मारना या (किसी चीज को) धार पर मारना = किसी चीज को बहुत हो तुच्छ और अग्राह्य समझाना । जैसे,—हम ऐसे रुपए पर धार मारने हैं, या ऐसा रुपया धार पर, मारते हैं । धार बँधना = किसी तरल पदार्थ का धार बनकर गिरना । धार बाँधना = किसी तरल पदार्थ को इस प्रकार गिराना जिसमें उसकी धार बन जाय ।
३. पानी का सोता । चश्मा ।
४. जल ड़मरूमध्य (लश॰) ।
५. किसी काटनेवाला हथियार का वह तेज सिरा या किनारा जिससे कोई चीज काटते हैं । बाढ़ । जैसे, तलवार की धार चाकू की धार, कैंची की धार । मुहा॰— धार बँधना = मंत्र आदि के बल से काटनेवाले अस्त्र की धार का निकम्मा हो जाना । धार बाँधना = मंत्र आदि के बल से किसी हथियार की धार की निकम्मा कर देना । विशेष— प्राचीनों का विश्वास था कि मंत्र के बल से हथियार की धार निकम्मी की जा सकती है ओर तब वह हथियार काट नहीं सकता ।
६. किनारा । सिरा । छोर ।
७. सेना । फौज ।
८. किसी प्रकार का डाका, आक्रमण या हल्ला । उ॰— जात सबन कहँ देखिए कहै कबीर पुकार । चेतका होहु तो चेत ले दिवस परत है धार ।— कबीर (शब्द॰) ।
९. और तरफ । दिशा । उ॰— महरि पैठत भीतर छीक बाँई धार ।—सूर (शब्द॰) ।
१०. जहाजों के तख्तों की संधि या जोड़ । कस्तूरा (लश॰) ।
धार ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ धारण] चोबदार या द्वारपाल (डिं॰) ।
धार ^५ संज्ञा पुं॰ [सं॰ धारण] वह पेड़ का तना या काठ का टुकड़ा जो कच्चे कूएँ के मुँह पर इसलिये लगा दिया जाता है जिसमें उसका ऊपरी भाग अंदर न गिरे ।