धृति
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]धृति ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]
१. धारण । धरने या पकड़ने की क्रिया ।
२. स्थिर रहने की क्रिया या भाव । ठहराव ।
३. मन की द्दढ़ता चित्त की अविचलता । धैर्य । धीरता । उ॰—कृश देह, विभा भरी भरी, धृति सूखी, स्मृति ही हरी हरी ।—साकेत, पृ॰ ३२१ । विशेष—साहित्यपदर्पण के अनुसार यह व्यभिचारी भावों में से एक है । मनु ने इसे धर्म के दस लक्षणों में कहा है ।
४. सोलह मातृकाओं में से एक ।
५. अठारह अक्षरों के वृत्तों की संज्ञा ।
६. दक्ष की एक कन्या और धर्म की पत्नी ।
७. अश्वमेध की एक आहुति का नाम ।
८. फलित ज्योतिष में एक योग ।
९. चंद्रमा की सोलह कलाओं में से एक ।
१०. संतोष । आनंद (को॰) ।
११. विचार । सावधानता (को॰) ।
१२. अठारह (१८) की संख्या (को॰) ।
१३. यज्ञ (को॰) ।
धृति ^२ संज्ञा पु॰
१. जयद्रथ राजा का पौत्र ।
२. एक विश्वदेव का नाम ।
३. यदुवंशीय वभु का पुत्र ।