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धोखा

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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धोखा संज्ञा पुं॰ [सं॰ धूकता (= धूर्तता)]

१. मिथ्या व्यवहार जिससे दूसरे के मन में मिथ्या प्रतीति उत्पन्न हो । धूर्तता या छल जिससे दूसरा भ्रम में पड़े । ऐसी युक्ति या चालाकी जिसके कारण दूसरा कोई अपना कर्तव्य भूल जाय । भुलावा । छल । दगा । जैसे, हमारे साथ ऐसा घोखा । यौ॰—घोखा घड़ी । धोखेबाज ।

२. किसी की धूर्तता, चालाकी, झूठ बात आदि से उत्पन्न मिथ्या प्रतीति । ऐसी बात का विश्वास जो ठीक न हो और जो किसी के रंग ढंग या बात चीत आदि से हुआ हो । दूसरी के छल द्वारा उपस्थित भ्रांति । डाला हुआ भ्रम । भुलावा । मुहा॰—धोखा खाना = किसी की धूर्तता था चालाकी न समझकर कोई ऐसा काम कर बैठना जो विचार करने पर ठीक व ठहरे । किसी के छल या कपट के कारण भ्रम में पड़ना । ठगा जाना । प्रतारित होना । उ॰—और न धोखा देत जो आपुहिं धोखा खात ।—व्यास (शब्द॰) । घोखा देना = (१) ऐसी मिथ्या प्रतीति उत्पन्न करना जिससे दूसरा कोई अयु्क्त कार्य कर बैठे । भ्रम में डालना । भुलावा देना । बुत्ता देना । छलना । जैसे,—लोगों को धोखा देने के लिये उसने यह सब ढंग रचा है । (२) भ्रम में डाल या रखकर अनिष्ट करना । झूठा विश्वास दिलाकर हानि करना । विश्वासघात करना । किसी को ऐसी हानि पहुँचाना जिसके संबंध में वह्न सावधान न हो । जैसे, यह नौकर किसी न किसी दिन धोखा देगा । उ॰—रहिए लटपट काटि दिन बरु घामहिं में सोय । छाँह न वाकी बैठिए जो तरु पतरो होय । जो तरु पतरो होय एक दिन धोखा दैहै । जा छिन बहै बयार टूटि वह जर से जैहै ।—गिरिधर (शब्द॰) । (३) अकस्मात् मरकर या नष्ट होकर दुःख पहुँचाना । जैसे,—(क) इस बुढ़ापे में वह पुत्र को लेकर दिन काटता था, उसने भी धोखा दिया (अर्थात् वह चल बसा) । (ख) यह चिमनी बहुत कमजोर है किसी दिन धोखा देगी ।

३. ठीक ध्यान न देने या किसी वस्तु के बाहरी रूप रंग आदि से उत्पन्न मिथ्या अतीति । असत् धारणा । भ्रम । भ्रांति । भूल । जैसे, (क) इस रँगे पत्थर को देखने से असल नग का धोखा होता है । (ख) तुम्हारे सुनने में धोखा हुआ, मैने ऐसा कभी नहीं कहा था । उ॰—पंडित हिये परै नहिं धोखा ।—जायसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—होना । मुहा॰—धोखा खाना = भ्रम में पड़ना । भ्रांत होना । और का और समझना । उ॰—जिमि कपूर के हंस सों हंसी धोखा खाय ।—हरिश्चंद्र (शब्द॰) । धोखा पड़ना = भूल चूक होना । भ्रम होना ।

४. ऐसी वस्तु या विषय जिससे मिथ्या प्रतीति उत्पन्न हो । भ्रांति उत्पन्न करनेवाली वस्तु या आयोजन । भ्रम में डालनेवाली वस्तु । असत् वस्तु । माया । जैसे,—(क) यह संसार धोखा है । (ख) राम भरोसा भारी है और सब धोखा धारी है । मुहा॰—धोखे की टट्टी = (१) वह परदा या टट्टी जिसकी ओट में छिपकर शिकारी शिकार खेलते हैं । (२) यथार्थ वस्तु या बात को छिपानेवाली वस्तु । भ्रम में डालनेवाली चीज । उ॰—मैं उनके आगे से धोखे की टट्टी हटाता हूँ ।— शिवप्रसाद (शब्द॰) । (३) ऐसी वस्तु जिसमें कुछ तत्व न हो । दिखाऊ चीज । धोखा खड़ा करना या रचना = भ्रम में डालने के लिये आडंबर खड़ा करना । माया रचना । उ॰—चित चोखा, मन निर्मला, बुधिं उत्तम, मति धीर । सो धोखा नहि विरचहीं सतगुरु मिले कबीर ।—कबीर (शब्द॰) ।

५. जानकारी का अभाव । ध्यान का न होना । अज्ञान । मुहा॰—धोखे में या धोखे से = जान में नहीं । जान बूझकर नहीं । भूल से । जैसे,—धोखे से लग /?/ क्षमा करना ।