धौ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]धौ संज्ञा पुं॰ [सं॰ धव] एक ऊँचा झाड़ या सदाबाहार पेड़ जो हिमालय पर ५००० फुट की ऊँचाई तक होता है और भारतवर्ष में प्राय: सर्वत्र जंगलों में मिलता है । विशेष—इसकी पत्तियाँ अमरूद की पत्तियों से मिलती जुलती होती हैं और छाल सफेद होती है जो चमड़ा सिझाने के काम में आती है । इसके फूल को रंगसाज आल के रंग में मिलाकर लाल रंग बनाते हैं । इससे एक प्रकार का गोंद निकलता है जिसे छीपी रंगों में मिलाकर कपड़ा छापते हैं । लकड़ी इसकी सफेद होती है और हल, मूसल, कुल्हाड़ी का बेट आदि बनाने के काम में आती है । इसका प्रयोग औषध में भी होता है और वैद्यक में यह चरपरा, कसैला, कफ—वात— नाशक, रुचिकारक और दीपन बतलाया गया है । वैद्य लोंग इसका प्रयोग पांडुरोग, प्रमेह, अर्श और वात रोग में करते हैं । पर्या॰—पिशाचवृक्ष । धुरंधर । गौर । पांडुर । नंदितरु । स्थिर । शुष्क तरु । धवल । शाकटाख्या ।