धौति

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

धौति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. शुद्ध ।

२. हठयोग की एक क्रिया जो शरीर को भीतर और बाहर से शुद्ध करने के लिये की जाती है । विशेष—घेरंडसंहिता में इसका पूरा वर्णन है । उसमें घौति चार प्रकार की कही गई है—अंतधौंति; दंतधौति; हृद्धौति और सार, वह्निसार, और वहिष्कृत । वातसार में मुँह को कौवे की चोंच की तरह निकालकर हवा खींचकर पेट में भरते हैं और उसे फिर मुँह से निकालते हैं । वारिसार में गले तक पानी पीकर अधोमार्ग से निकालते हैं । अग्निसार में साँस को रोककर और पेट को पचकाकर नाभि को सौ बार मेरुदड (रीढ़) से लगाना पड़ता है । बहिष्कृत में कौवे की चोंच की तरह मुँह करके पेट में हवा भरते हैं और उसे चार दंड वहाँ रखकर अधोमार्ग से निकालते हैं । इसके पीछे नाभि तक जल में खड़े होकर आँतों को बाहर निकालकार मल धोते हैं और फिर उन्हें उदर में स्थापित करते हैं । दंतधौति भी पाँच प्रकार की होती है—दंतमूल, जिह्वामूल, रंध्र, कर्णद्रार और कपालरंध्र । इनमें से जिह्वामूल की शुद्धि जीभ की चिमटी से खींचकर करते हैं । रंध्र धौति में नाक से पानी पीकर मुँह से और मुँह से सुड़ककर नाक से निकालना पड़ता है । इसी प्रकार और भी शुद्धियों को समझिए ।

३. योग की एक क्रिया । विशेष—इसमें दो अंगुल चौड़ी और आठ दस हाथ लंबी कपड़े की धज्जी मुँह से पेट के नीचे उतारते हैं, फिर पानी पीकर उसे धीरे धीरे बाहर निकालते हैं । इस क्रिया से आँतें शुद्ध हो जाती हैं ।

४. योग की क्रिया में काम आनेवाली कपड़े की लंबी धज्जी ।