धौल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]धौल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [अनु॰]
१. हाथ के पंजे का भारी आघात जो सिर या पीठ पर पड़े । धप्पा । चाँटा । थप्पड़ । उ॰—पुनि भाषइ तो इक धौल लगै सब पद्धति दूर दुरै चट तें ।— गोपाल (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—देना ।—पड़ना ।—मारना ।—लगना ।—लगाना । यौ॰—धौल धप्पड़ । धौल धप । धौल धक्का । धौल धप्पा । मुहा॰—धौल कसना, या जमाना = चाँटा लगाना, थप्पड़ मारना । धौल खाना = चाँटा सहना । थप्पड़ की मार सहना ।
२. हानि का आघात । नुकसान का धक्का । हानि । टोटा । जैसे,—बैठे बैठाए५००) की धौल पड़ गई । क्रि॰ प्र॰—पड़ना ।—लगना ।
धौल ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ धवल]
१. धौर नाम की ईख जिसकी खेती कानपुर, बरेली आदि में हीती है ।
२. ज्वार का हरा डंठल ।
धौल ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ धवल] धौ का पेड़ । धौरा । बकली ।
धौल ^४ वि॰ [सं॰ धवल] उजला । सफेद । उ॰—देव कहैं अपनी अपनी अवलोकन तीरथराज चलो रे । देखि मिटै अपराध अगाध निमज्जत साधु समाज भलो रे । सोहै सितासित को मिलिबो तुलसी हुलसै हिय हेरि हिलोरे । मानो हरी तृन चारु चरैं बगरे सुरधेनु के धौल कलोरे ।—तुलसी (शब्द॰) । मुहा॰—धौल धूत = गहरा धूर्त । पक्का चालबाज । उ॰—ऊधो हम यह कैसे मानें । धूत धौल लंपट जैसे पट हरि तैसे औरन जाने ।—सूर (शब्द॰) ।
धौल ^५ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ धौराहर] धरहरा । धौराहर । उ॰—कंटक बनाए वेश राम ही को जायो पापी मेरो मन धुआँ को सो धौल नभ छायो है ।—हनुमान (शब्द॰) ।
धौल पु ^६ संज्ञा पुं॰ [सं॰ धवल] हाथी । उ॰—धौल मंदलिया बैलर बाबी ।—कबीर र्ग्र॰, पृ॰ ९२ ।
धौल पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ धवल] धवलता । श्वेतता । सफेदी । उ॰— सहजो धौले आइया झड़ने लागे दाँत । तन गुँझल पड़ने लगी सूखन लागी आँत ।—सहजो॰ पृ॰ २९ ।