ध्रुपद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

ध्रुपद संज्ञा पुं॰ [सं॰ ध्रुवपद] एक गति जिसके चार तुक होते है ।— अस्थायी, अंतरा संचारी औक आभोग । कोई मिलातुक नामक इसका एक पाँचवाँ तुक भी मानते है । इसके द्बारा देवताओँ की लीला, राजाओँ के यज्ञ तथा युद्धादि का वर्णन गूढ़ राग रागिनियों से युक्त गाया जाता है । विशेष—इसके गाने कि लिये स्त्रियों के कोमल स्वर की आवश्य- कता नहीं । इसमें यद्यपि द्रुतलय ही उपकारी है, तथापि यह विस्तृत स्वर से तथा विलंबित लय से गाने पर भी भला मालूम होता है । किसी किसी ध्रुपद में अस्थायी और अंतरा दी ही पद होते हैं । ध्रुपद कानड़ा, ध्रृपद केदार, ध्रुपद एमन आदि इसके भेद हैं । इस राग को संकृत में ध्रुवक कहते हैं । जयंत, शेखर, उत्साह, मधुर, निर्मल, कुंतल, कमल, सानंद, चंद्रशेखर, सुखद, कुमुद, जायी, कदर्प, जय- मंगल ,तिलक और ललित । इनमें से जयंत के पाद में ग्यारह अक्षर होते है फिर आगे प्रत्येक में पहले से एक एक अक्षर अधिक होता जाता है; इस प्रकार ललित में सब २६ अक्षर होते हैँ । छह पदों का ध्रुपद उत्तम, पाँच का मध्यम और चार का अधम होता है ।