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ध्रुव

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ध्रुव ^१ वि॰ [सं॰]

१. सदा एक ही स्थान पर रहनेवाला । इधर उधर न हटनेवाला । स्थिर ।अचल ।

२. सदा एक ही अवस्था में रहनेवाला । नित्य ।

३. निश्चित । दुढ़ । ठोक । पक्का । जैसे— उनका आना ध्रुव है ।

ध्रुव ^२ संज्ञा पुं॰

१. आकाश ।

२. शंकु । कील ।

३. पर्वत ।

४. स्थाणु । खंमा । थून ।

५. वट । बरगद ।

६. आठ वस्तुओं में से एक ।

७. ध्रुवक । ध्रुपद ।

८. एक यज्ञपात्र ।

९. शरारि नामक पक्षी ।

१०. विष्णु ।

११. हार ।

१२. फलित ज्योतिष में एक शुभ योग जिसमें उत्पन्न बालक बड़ा विद्बान, बुद्धिमान् और प्रसिद्ब होता है ।

१३. ध्रृवतारा ।

१४. नाक का अगला भाग ।

१५. गाँठ ।

१६. पुराणों के अनुसार राजा उत्तानपाद के एक पुत्र जिनकी माता का नाम सुनीति था । विशेष— राजा उत्तानपाद को दो स्त्रियां थो: सुरूचि और सुनीति । सुरुचि से उत्तम और सुनीति से ध्रुव उत्पन्न हुए । राजा सुरुचि को बहुत चाहते थे । एक दिन राजा उत्तम को गोद में लिए बैठे थे इसी बीच मे ध्रुव खेलते हुए वहाँ आ पहुँचे ओर राजा की गोद बैठ गए । इसपर उनकी विमाता सुरूचि ने उन्हें अवज्ञा के साथ वहाँ से उठा दिया । ध्रुव इस अपमान को सह न सके; ओर घर से निकलकर तप करने चले गए । विष्णु भगवान उनकी भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें वर दिया कि 'तुम सब लोकों और ग्रहों नखत्रों के ऊपर उनके आधार स्वरुप होकर अचल भाव से स्थित रहोगे और जिस स्थान पर तुम रहोगे वह ध्रृब लोक कहलावेगा । इसके उपरांत ध्रुव ने घर आकर पिता से राज्य प्राप्त किया और शिशुमार को कन्या भ्रमि से विवाह किया । इला नाम की इनकी एक और पत्नी थी । भ्रमि के गर्म से कल्प और बत्सर तथा इला के गर्भ से उत्कल नामक पुत्र उत्पन्न हुए । एक बार इनके सौतेले भाई उत्तम को यक्षों ने मार ड़ाला इसलिये इन्हें उनसे युद्ब करना पड़ा जिसे पितामह मनु ने शांत किया । अंत में छत्तीस हजार वर्ष राज्य करक ध्रुव विष्णु के दिए हुए । ध्रुवलोक में चले गए ।

१७. शरीर की भोंरी । विशेष— वक्षस्थल, मस्तक, रंध्र, उपरंध्र, माल और अपान इन स्थानों की भौरियां ध्रुव कहलाती हैं । (शव्दार्थचिंतामणि) ।

१८. भूगोल विद्या में पृथ्वी का अक्ष देश । पृथ्वी के वे दोनों सिरे जिससे होकर अक्षरेखा गई हुई मानी जाती हैं । विशेष— सूर्य की परिक्रमा पृथ्वी लट्टू की तरह घुमती हुई करती है । एक दिन रात में उसका इस प्रकार का धूमना एक बार हो जाता है । जिस प्रकार लटूठ् के बीचोबीच एक कील गई होती है जिसपर वह घुमता है उसी प्रकार पृथ्वी के गर्भकेंद्र से गई हुई एक अक्षरेखा मानी गई है । यह अक्षरेखा जिन दो सिरों पर निकली हुई मानी गई है उन्हें 'ध्रुव' कहते है । ध्रुव दो हैं—उत्तर ध्रुव या सुमेरु और दक्षिण ध्रुव या कुमेरु । इन स्थानों से २२ १/२ अंश पर पृथ्वी के तल पर एक एक वृत्त माने गए हैं । जिन्हें उत्तर और दक्षिण शितकटिवंध कहते हैं । ध्रुवों और इन वृतों के बीच के प्रदेश अत्यंत ठंड़े हैं । उनमें समुद्र आदि का जल सदा जमा रहता है । घ्रुव प्रदेश में दिन रात २४ घंटों का नहीं होता, वर्ष भर का होता है । जब तक सूर्य उत्तरायण रहते है तब तक उत्तर ध्रुव पर दिन और दक्षिण ध्रुव पर रात और जब तक दक्षिणायन रहते हैं तब तक दक्षिण ध्रुव पर दिन और उत्तर ध्रुव पर रात रहती है । अर्थात् मोटे हिसाब से कहा जा सकता है कि वहाँ छइ महीने की रात और छह महीने का दिन होता है । इसी प्रकार वहाँ संध्या और उषा काल भी लंबा होता है । वहाँ सूर्य और चंद्रमा पूर्व से पश्चिम जाते हुए नहीं मालूम होते बल्कि चारों ओर कोल्हू कै बैल की तरह घुमते दिखाई पड़ते हैं । ध्रुव प्रदेश में उषा काल और संध्या काल की ललाई क्षितिज के ऊपर वीसों दिन तक घुमती दिखाई पड़ती है । वहीं तक नहीं वह नक्षत्र युक्त राशिचक्रभी ध्रृव के चारों ओर चुकना दिखाई पड़ता है ।

ध्रुव पु वि॰ [हि॰] दे॰ 'घ्रूव' । उ॰— दिष्षे सु नयन पुह करि प्रसिद्ध । कियौ पाप इन ध्रुब करि ।—पृ॰ रा॰ १ । ५८२ ।