नंदवंश

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नंदवंश संज्ञा पुं॰ [सं॰ नन्दवंश] मगध का एक विख्यात राजवंश जिसका अंतिम राजा उस समय सिंहासन पर था जिस समय सिकंदर ने ईसा से ३२७ वर्ष पूर्व पंजाब पर चढ़ाई की थी । विशेष— इस वंश का उल्लेख विष्णुपुराण, श्रीमदभागवत ब्रह्माड़ंपुराण आदि में मिलता है । विष्णुपुराण में लिखा है कि शुद्रा के गर्भ से महानंदि का पुत्र महापद्दानंद होगा जो समस्त क्षत्रियों का विनाश करके पृथिवी का एकछत्र भोग करेगा । उसके सुमालि आदि आठ पुत्र होगे जो क्रमशः सौ वर्ष तक राज्य करेंगे । अंत में कौटिल्य के हाथ से नंदों का नाश होगा ओर मौर्य लोग राजा होगे । इसी प्रकार का बर्णन भागवत में भी है । ब्रह्माड़पुराण में कुछ विशेष ब्योरा है । उसमें लिखा है कि राजा विद्दिसार (कदाचित् बिंबसार जो गौतमबुद्ध के समय तक था और जिसका पुत्र अजातशत्रु बुद्ध का शिष्य हुआ था) २८ वर्ष तक, उसका, पुत्र अजात- शत्रु ३५ वर्ष तक, फिर उदायी २३ वर्ष तक, नंदिवर्धन ४२ वर्ष तक और महानंदि ४० वर्ष तक राज्य करेगे । शुद्रा के गर्भ से उत्पन्न महानदि का पुत्र क्षत्रियों का नाश करनेवाला नंद होगा । वह और उसके आठ पुत्र मोटे हिसाब से १०० वर्ष तक राज्य करेंगों । अंत मे कौटिल्य के हाथ से सब मारे जायँगी । कथासरित्सगार में भी नंद का उपाख्यान एक रोचक कहानी के रुप में इस प्रकार दिया गया है । इंद्रदत्त, व्याड़ि और वररुचि अर्थापार्जन के लिये नंद की सभा मे पहुचे । पर उनके पहुँचने के कुछ पहले नंद मर गए । इंद्रदत्त ने बोगवल से नद के मृत शरीर में प्रवेश किया जिससे नंद जी उठे । ध्याड़ि ईद्रदत्त के शरीर की रक्षा करने लगे । राजा के जी उठने पर मंत्रि शकटार को कुछ संदेह हुआ और उसने आज्ञा दे दी कि नगर में जितने मुर्दे हों सब तुरंत जला दिए जायँ । इस प्रकार इंद्रदत्त का पहला शरीर जला दिया गया और उनकी आत्मा नंद के शरीर में ही रह गई । नंद देहधारी इंद्रदत्त योगनंद नाम से प्रसिद्द हुए । योगानंद ने ब्रह्महत्या का अपराध लगाकर शक- टार को सपरिवार कैद कर लिया और अनेक प्रकार के कष्ट देने लगा । शकटार क सब पुत्र तो यंत्रणा में मर गए, पर शकटार ने प्रतिकार की इच्छा ने अपने प्राणरक्षा की । वररुचि योगनंद के मंत्री हुए । उनके कहने से नंद ने शकटार को छोड़ दिया । धीरे धीरे नंद अनेक कहने के अत्याचार करने लगा । एक दिन उसने वररुचि पर क्रुद्ध होकर उन्हें मार ड़ालने की आज्ञा दी । शकटार ने उन्हें छिपा रखा । एक दिन राजा फिर वररुचि के लिये व्याकुल हुए । इसपर शकटार ने उन्हें लाकर उपस्थित किया । पर वररुचि ने उदास हो वानप्रस्थ ग्रहण कर लिया । शकटार यद्यपि नंद के मंत्री रहे तथापि उसके विनाश का उपाय सोचते रहें । एक दिन उन्होंने देखा कि एक ब्रह्मण कुशों तो उखाड़ उखाड़कर गड़ढा खोद रहा है । पुछने पर उसने कहा 'ये कुश मेरे पैर में चुमें थे, इससे उन्हें विना समुल नष्ट किए न रहुँगा ।' वह ब्रह्मण कौटिल्य चाणक्य था । शकटार ने चाणक्य को अपने कार्यसाधन के लिये उपयोगी समझकर उसे नंद के यहाँ जाने के लिये श्राद्ध का निमँत्रण दे दिया । चाणक्य नंद के प्रासाद में पहुँचे ओर प्रधान आसन पर बैठ गए । नंद को यह सब खबर नहीं थी: उसने वह आसन दूसरे के लिये रखा था । चाणक्य को उसपर बैठा देख उसने उठ जाने का इशारा किया । इसपर चाणक्य ने उत्यंत क्रुद्ध होकर कहा— 'सात दिन में नंद की मृत्यु होगी' । अकटार ने चाणक्य को घर ले जाकर राजा के विरुद्ध और भी उत्तेजित किया । अंत मे अभिचार क्रिया करके चाणक्य ने सात दिन में नंद को मार ड़ाला । इसके उपरांत योगनंद के पुत्र हिरण्यगुप्त को मारकर उसने नंद के पुत्र चंद्रगुप्त को राज- सिंहासन पर बैठाया और आप मंत्री का पद ग्रहण किया । बौद्ध और जैन ग्रंथों में नंद का वृत्तांत मिलता है पर भेद इतना है कि पुराणों में तो महापदमनंद को महानदि का पुत्र माना है, चाहे शुद्रा के गर्भ से सही; पर जैन और बोद्ध ग्रंथों में उसे सर्वथा नीच कुल का ओर अकस्मात् आकंर राज- सिंहासन पर बैठनेवाला लिखा है । कथासरित्सागर में चंद्रगुप्त को जो नंद का पुत्र लिखा है उसे इतिहासज्ञ ठीक नहीं मानते । मौर्यवंश एक दुसरा राजबंश था । कोई कोई इतिहासज्ञ 'नवनंद' शब्द का अर्थ नए नंद करते है जौ शुद्र थे । उनके अनुसार नंदवक शुद्ध क्षत्रियवंश था और 'नवनंद' शूद्र थे ।